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________________ दशमः गर्भागतोऽहमिन्द्रोऽभूत्सर्वदिक्षु प्रकाशकम् । गगनं निर्मलञ्चासीद् ववुर्वाता: सुखावहाः ।। २२ ।। चकुस्तस्यास्तदा गर्भशोधनं षट्कुमारिकाः । दास्ये हि स्थिता चासन् नानासेवातत्पराः ।। २३ ।। माघमासे ततः कृष्णद्वादश्यां गर्भगः शुभे । जाविरासीष्जगन्नाथः तस्यां सिन्धी विधुर्यथा ||२४|| अन्वयार्थ - (यदा = तब ). अहमिन्द्र = वह अहमिन्द्र देव, गर्भागतः - गर्भ में आया, तदा = तब सर्वदिक्षु = सभी दिशाओं में, प्रकाशकम् = प्रकाश करने वाला, (तेजः = तेज), अभूत् = हो गया, गगनं = आकाश, निर्मलं = साफ-स्वच्छ, आसीत् था, वाताः = हवायें - वायु, सुखावहाः = सुखप्रद वदुः = बह रही थीं। षट्कुमारिकाः = छह कुमारियों ने, तस्या उस रानी के, गर्भशोधनं = गर्भ का शोधन, चक्रुः नानासेवातत्पराः = नानाविध सेवा उद्यमशील दास्ये - दास्य कर्म में, उपस्थित, आसन = रहती थीं। ततः = उसके बाद माघमासे = माघ महिने में, शुभे = शुभ, कृष्णद्वादश्यां = कृष्ण पक्ष की बारहवीं के दिन, गर्भगः = गर्भ में स्थित जगन्नाथ = जगत् के स्वामी तीर्थङ्कर, तस्यां = उस रानी में, (तथा वैसे ही), आविः = उत्पन्न, आसीत् हुये, यथा = जैसे, सिन्धौ समुद्र में विधुः = चन्द्रमा । श्लोकार्थ जब वह अहमिन्द्र रानी के गर्भ में आया, तो सभी दिशाओं = 1 किया, च = और, करने में तत्परता से हि = ही, स्थिताः = = — २६३ = = में प्रकाश करने वाला तेज व्याप्त हो गया, आकाश स्वच्छ हुआ और सुखप्रद हवायें बहने लगीं । षट्कुमारिकाओं ने उस रानी के गर्भ का शोधन किया और नाना प्रकार से उनकी सेवा में तत्पर अर्थात् तैयार होकर हमेशा दासी के करने योग्य दास्य कर्म के करने में ही प्रसन्न रहने लगीं । दिन उसके बाद माघ महिने में कृष्णपक्ष की द्वादशी के शुभ गर्भ में स्थित जगत् के स्वामी भगवान् का जन्म ही हुआ जैसे समुद्र में चन्द्रमा । रानी में वैसे
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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