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________________ २६२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = तब, सा = उस रानी ने, दृष्टस्वप्नान् = देखें गये स्वप्नों को, समुच्चार्य = कहकर, स्वप्नफलं = स्वप्नों के फल को, अपृच्छत् = पूछा। श्लोकार्थ – इस प्रकार स्वप्नों को देखकर रानी जाग गयी और रोमाञ्चित शरीर और प्ररमन मुख वाली होकर वह रानी अपने पति के पास गयी राजा द्वारा आदर सहित बैठायी गयी तब उस रानी ने देखे गये स्वप्नों को कहकर राजा से स्वप्नों का फल पूछा। ततः स्वप्नफलं राजा संविचार्याह तां प्रियाम् । तय गर्भे समायातो देवदेवो महान् धुवम् ।।२०।। अन्वयार्थ --- ततः = उसके बाद, स्वप्नफलं = स्वप्नों के फल को, संविचार्य = अच्छी तरह विचार कर, राजा = राजा, तां = उस, प्रियां - प्रिय रानी को, आह = बोला. तव = तुम्हारे, गर्भे = गर्भ मैं, धुवं = निश्चित ही, महान् = एक महान्, देवदेवः = देवों का भी देव अर्थात् तीर्थङ्कर जीव, समायातः = आ गया है। श्लोकार्थ – उसके बाद स्वप्नों के फल को अच्छी तरह से सोचकर वह राजा अपनी उस प्रिय रानी को बोला- तुम्हारे गर्भ में निश्चित ही एक महान् देवों का भी स्वामी अर्थात् तीर्थङ्कर सत्वी जीव आ गया है। इति श्रुत्वा तदा देवी परमानंदसंप्लुता । धन्यत्वं स्वात्मनि स्थाप्यातिष्ठदाजगृहे मुदा ।।२१।। अन्वयार्थ – इति = इस प्रकार स्वप्न फल को, श्रुत्वा = सुनकर. तदा = तब, परमानंदसुप्लुता = परमानंद में डूबी हुई अर्थात् आनंदित होती हुई, देवी = रानी ने, स्वात्मनि = अपने में, धन्यत्वं = धन्यता को, स्थाप्य = स्थापित करके, मुदा = प्रसन्न मन से, राजगृहे = राजभवन में, अतिष्ठत = वास किया। श्लोकार्थ – इस प्रकार स्वप्नों के फल को सुनकर उसी समय परमानंद में डूबी हुई उस रानी ने अपने आप में धन्यता स्थापित कर अर्थात अपने को धन्य मानकर वह प्रसन्न मन से राजगृह में रहती थी।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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