SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमः २६१ एक ही जैसी विधि से प्रेमपूर्वक बादलों के समान, मूसलाधार रत्नों की वर्षा की। एकदा रत्नपर्यङ्के देवी समाविशत्सती। चैत्र कृष्णदले षष्ठ्यां पूर्वाषाढामिधे शुभे ।।१६।। अर्धयामावशिष्टायां रात्री स्वप्नांश्च षोडशान् । दृष्ट्वाऽपश्यदन्ते सा वक्त्रगं मत्तसिन्धुरं ।।१७।। अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, चैत्र कृष्णदले = चैत्रमास के कृष्ण पक्ष में, षष्ट्या = षष्ठी के दिन, शुभे = शुभ. पूर्वाषाढ़ाभिधे = पूर्वाषाढ नामक नक्षत्र में, रात्रौ = रात्रि में, सा :: वह, सती = शीलवती. देवी = रानी, रत्नपर्यङ्के = रत्नमय पलंग में, समाविशत् = प्रविष्ट हुई अर्थात् सोयो, च = और, अर्धयामावशिानायां = आधा पहर राति शोष रहने पर षोडश = सोलह, स्वप्नान = स्वप्नों को, दृष्ट्वा = देखकर, अन्ते = अन्त में, वक्त्रगं = मुख में जाता हुआ, मत्तसिन्धुरं = उन्मत्त हाथी को, अपश्यत् = देखा। __ श्लोकार्थ – एक दिन चैत्रकृष्णा को शुभ पूर्वाषाढ नक्षत्र में वह सती रानी रात्रि में रत्नमय पलंग पर सोयी तथा आधा प्रहर रात्रि शेष रहने पर उसने सोलह स्वप्नों को देखकर अपने मुख में जाते हुये उम्मत्त हाथी को देखा। एवं स्वप्नान् समीक्ष्येयं प्रबुद्धा पुलकाञ्चिता । प्रफुल्लवदना देवी गता सा स्वपत्युरन्तिकम् । [१८।। सादरं सा शुभे पीठे भूपालेनोपवेशिता | दृष्टस्वप्नान् समुच्चार्याऽपृच्छत्स्वप्नफलं तदा।।१६।। अन्वयार्थ – एवं = इस प्रकार, स्वप्नान् = स्वप्नों को समीक्ष्य = देखकर, इयं = यह रानी, प्रबुद्धा = जाग गयी. (च = और). पुलकाञ्चिता = रोमाञ्चित. प्रफुल्लवदना प्रसन्नमुख वाली, सा = वह. देवी = रानी, स्वपत्युरन्तिकं = अपने पति के पास, गता = गयी, भूपालेन = राजा द्वारा, सादरं = आदर सहित, शुभे = शुभ, पीठे = पीठ पर, उपवेशिता = बैठायी गयी, तदा
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy