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________________ अथ दशमोऽध्यायः विद्युद्वराख्यकूटाद्यः श्रेयस्सम्प्राप निर्मलः । जगत्सन्तापहर्तारं शीतलनाथं नमाम्यहम् ||१|| अन्वयार्थ – यः = जिन, निर्मलः = मलरहित शीतलनाथ ने, विद्यद्वराख्यकूटात् = विद्युद्वर नामक कूट से, श्रेयः == मोक्ष को, सम्प्राप = प्राप्त किया, (तं = उन), जगत्सन्तापहर्तारं = जगत् के संताप को हरने वाले, शीतलनाथं = शीतलनाथ को, अहं = मैं, नमामि' = नमस्कार करता हूँ। श्लोकार्थ – जिन निर्मल शीतलनाथ ने विद्युद्वरकूट से मोक्ष प्राप्त किया मैं जगत् के संताप को हरने वाले शीतलनाथ को नमस्कार करता हूं। पुष्कराख्ये महाद्वीपे मन्दरे कान्तिमन्दिरे । नद्याः पूर्वविदेहेस्मिन् सीतायाः दक्षिणे तटे ।।२।। वत्सदेशे सुसीमाख्यं नगरं किल शोभते । पद्मगुल्मस्तत्रा राजा बभूव सुकृताम्बुधिः ।।३।। अन्वयार्थ – पुष्कराख्य = पुष्कर नामक, महाद्वीपे = महाद्वीप में, कान्तिमन्दरे = कान्ति के मन्दिर स्वरूप, अस्मिन् = इस, मन्दरे = मन्दर मेरू पर, पूर्वविदेहे = पूर्वविदह क्षेत्र में, सीतायाः = सीता, नद्याः = नदी के, दक्षिणे = दक्षिण, तटे - तट पर, वत्सदेशे = वत्सदेश में, सुसीमाख्यं = सुसीमा नामक, नगरं = नगर, शोभते = सुशोभित होता है, किल = अव्यय, तत्र = उस नगर में, सुकृताम्बुधिः = पुण्य का सागर अर्थात् महान् पुण्यात्मा, पद्मगुल्मः = पद्मगुल्म नामक, राजा = राजा, बभूव = हुआ था। श्लोकार्थ -- पुष्करवर महाद्वीप के मेरूमन्दर पर्वत पर स्थित पूर्वविदेह क्षेत्र को सीतानदी के दक्षिण तट पर वत्सदेश में एक सुसीमा
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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