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________________ नवमः सम्मेदाचलं - सम्मेदशिखर को. यातवान् = चल दिया, च = और, तत्रैव = वहाँ ही, दैवयोगात् = भाग्यवशात्. सः = उस श्रेष्ठी ने, तनुं = देह को. अत्यजत् = छोड़ दिया। श्लोकार्थ -- वह सेठ विदर्भ देश के रास्ते से सम्मेदशिखर को चल दिया किन्तु रास्ते में ही भाग्यवशात् उस सेठ ने देह को छोड़ दिया अर्थात् उसकी मृत्यु हो गयी। ततः सोमप्रभो भूत्या चावाऽभवन्नृपः । एवं प्रभासकूट भो ज्ञात्वा यात्रां कुरू त्यं ।।८४|| अन्वयार्थ - ततः च = और उसके बाद, सोमप्रभः = सोमप्रभ, भूत्वा = होकर. अत्रैव = यहाँ ही. नृपः = राजा, अभवत् = हो गया. भो = अरे. एवं = इस प्रकार, प्रभासकूट = प्रभासकूट को. ज्ञात्वा = जानकर, त्वं = तुम, यात्रा = प्रभासकूट की यात्रा को, कुरू = करो। श्लोकार्थ – यात्रा करने की भावना से मरने के बाद वह सेठ सोमप्रभ होकर इसी नगर में ही राजा हो गया अरे! इस प्रकार के प्रभासकूट को जानकर तुम उसकी यात्रा करो। मुनिवाक्यमिति श्रुत्वा गृहमागत्य सत्वरम् । सत्संघसहितो यात्रां सम्मेदस्य चकार सः ।।१५।। अन्वयार्थ – इति = ऐसा, मुनिवाक्यं = मुनि वचनों को, श्रुत्वा = सुनकर, सत्वरं = शीघ ही, गृह = घर को. आगत्य = आकर, सत्संघसहितः = प्रशंसनीय संघ सहित, सः = उसने, सम्मेदस्य = सम्मेदपर्वत की. यात्रां = यात्रा को, चकार = किया। श्लोकार्थ – मुनिराज के ऐसे वचन सुनकर और जल्दी घर आकर, प्रशंसनीय संघ को साथ लेकर उसने सम्मेदशिखर की यात्रा की। तत्र गस्या सुप्रभं कूटं भक्त्याभिनन्दितः । राज्यं च लौकिकं प्राप्य भुक्त्वा भोगाननेकशः ।।६।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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