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________________ २८२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य ने उस सेठ से वही बात कह दी कि आहारलब्धि रूप ऋद्धि को पाकर ही थोड़े से अन्न को खाकर भी मैं बहुत मोटा हूं इसमें कोई सन्देह नहीं है । मुनिराज के इन वचनों के प्रभाव से उस सेठ ने लोभ को छोड़कर दान दिया और सचमुच पुण्यशाली हो गया फिर एक दिन उस सेट द्वारा शुभसेन नामक मुनिराज देखे गये। तदा सुप्रभकूटस्य वर्णनं मुनिना कृतम् | यात्राभावी स तत् श्रुत्वा बभूव मुनिदर्शनात् ||१|| तदैव कोटिभटता योग्यता तस्य चाभवत् । पुण्यवृद्धिभूयास्य तधात्राभावनादपि ।।२।। अन्वयार्थ – तदा = तब, मुनिना = मुनिराज द्वारा सुप्रभकूटस्य = सुप्रभकूट का, वर्णनं - वर्णन, कृतम् = किया गया, तत् = उस वर्णन को. श्रुत्वा = सुनकर, सः = वह सेठ, यात्राभावी = यात्रा करने की भावना करने वाला, बभूव = हुआ, मुनिदर्शनात् = मुनिराज के दर्शन से, तदैव = उसी समय, तस्य :- उस सेठ की, कोटिभटता = कोटिभट पने रूप, योग्यता = योग्यता, अभवत् = हो गयी, तद्यात्राभावनादपि - उस समय सम्मेदशिखर की यात्रा करना है इस भाव के कारण से, अस्य = इस सेठ की, पुण्यवृद्धिः = पुण्य में बढोत्तरी, बभूव = हो गयी थी। श्लोकार्थ – तभी मुनिराज द्वारा सुप्रभकूट का वर्णन किया गया जिसे सुनकर वह सेट सम्मेद पर्वत की यात्रा करने की भावना वाला हो गया। मुनि के दर्शन से उसी समय उस सेट के कोटिभट होने की योग्यता हो गयी थी। इस सेठ के पुण्य में निरन्तर बढ़ोत्तरी ‘सम्मेदशिखर की यात्रा करना है इस भावना से ही हो गयी थी। सः विदर्भदेशमार्गेण सम्मेदाचलं यातयान् । तत्रैव दैवयोगाच्च स श्रेष्ठी तनुमत्यजत् ।।८३|| अन्वयार्थ - सः = वह सेट, विदर्भदेशमार्गेण = विदर्भ देश के रास्ते से,
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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