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________________ नवमः २८ लोभं हित्याऽकरोद्दानं पुण्यात्मा च बभूव हि । एकदा शुभसेनाख्यो गुणीमादलेन लशितः I अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, अत्र = इस नगर में, हि = ही, देवविमानानि = देवताओं के विमान, निस्सृतानि = निकले, च = और, सुरविमानगैः = देवविमानों में स्थित, तैः = उन देवों द्वारा, पथि = रास्ते पर, रत्नपुष्पाणां = रत्नों-कमलों की, वृष्टिः = वर्षा, कृता = की। तदैव = उस ही समय, असौ = वह सेठ, लोभाक्रान्तः - लोभ से आक्रान्त हुआ. गृहात् = घर से, बहिः = बाहर. निर्जगाम = निकला. तत्र = वहाँ, अजिताख्यं = अजित नामक, मनिं = मनि को, अद्राक्षीत = देखा, सः = वह सेठ, तं = उन मुनि के, प्रति = प्रति, अब्रवीत् = बोला, मुने = हे मुनीश! त्वं = आप, अत्र = इस अवस्था में. केन हेतुना = किस कारण से, बहुलपीनः = अत्यधिक मोटे, असि = हो, च = और, तदा = तब, तेन = उन मुनिराज द्वारा, तं = उस सेठ के, प्रति = प्रति, तथा = वैसी, एव = ही, वार्ता = बात. कथिता = कही गयी. आहारलब्धि = आहारलब्धि को, लब्ध्वा = पाकर, हि = ही, अल्पं = थोड़े, अन्नं -- अन्न को, भुक्त्वा = खाकर, अपि = भी, पीनः = मोटा, अस्मि = हूं, अत्र = इसमें, संशयः = सन्देह, न = नहीं है, मुनेः = मुनि के, संप्रभावतः = सम्यक् वचनों के प्रभाव से. सः = उस सेठ ने, लोभ = लोभ को, हित्वा = छोड़कर, दानं = दान, अकरोत् = किया, च = और, हि = निश्चित ही, पुण्यात्मा = पुण्यशाली, बभूव = हो गया, एकदा = एक दिन, तेन = उस सेट के द्वारा, शुभसेनाख्यः = शुभसेन नामक, मुनीशः = मुनिराज. लक्षितः - देखे गये। __ श्लोकार्थ - एक दिन इसी नगर में देवताओं के विमान निकले। उन विमानों में बैठे देवों द्वारा मार्ग पर रत्न पुष्पों की वर्षा की गई। उसी समय अत्यंत लोभ से ग्रसित वह सेठ भी घर से बाहर निकला । वहाँ उसने अजित नामक मुनि को देखा उन्हें देखकर वह उनसे बोला - हे मुनिराज! आप किस कारण से इस मुनिदशा में भी इतने अधिक मोटे हो । तब उन मुनिराज
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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