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नवमः
को, वीक्ष्य = देखकर, निर्विघ्नः = विना विघ्न वाले, सः = उस, कोटिभटः = कोटिभट सोमप्रभ ने, प्राप्तवैराग्यं = वैराग्य को प्राप्त, आत्मानं = अपने आपको, धिक् = धिक्कारित,
चकार = किया। श्लोकार्थ - तभी लाखों मृत मनुष्यों को देखकर बिना विघ्न वाले उस
कोटिभट सोमप्रभ ने अपने आपको धिक्कारा और वैराग्य को
प्राप्त हुआ। हेमप्रभं तदोवाच राजन् राजपदाप्तये । मया बहूनां निधनं कृतं कृत्याघसंचयम् ।।६५।। इत्युक्त्या स जगामाशु वनं मुनिजनाश्रितम्।
निरीक्षितस्तत्र तेन स्वामी विमलवाहनः ।।६६ ।। अन्वयार्थ – तदा = तब, (सः = वह), हेमप्रभं = हेमप्रभ नामक पिता को,
उवाच = बोला, राजन = हे राजन! राजपदाप्तये = राजपद की प्राप्ति के लिये, अघसंचयं = पापों का संचय, कृत्वा = करके, मया - मेरे द्वारा, बहूनां = अत्यधिक लोगों का, निधनं = मरण, कृतं - किया गया, इति = इस प्रकार, उक्त्वा कहकर, सः = वह, मुनिजनाश्रितं = मुनिजनों के लिये रहने योग्य, वनं :- वन को, आशु = जल्दी, जगाम = चला गया. तत्र = उस वन में, तेन = उस सोमप्रभ द्वारा, स्वामी = स्वामी.
विमलवाहनः = विमलवाहन, निरीक्षितः = देखे गये। श्लोकार्थ – तभी वह अपने हेमप्रभ नामक पिता से बोला- हे राजन!
सजपद की प्राप्ति के लिये पापों का संचय करके मैंने बहुत सारे लोगों को मारा है । इस प्रकार कहकर वह राजा मुनिजनों के रहने योग्य वन में चला गया जहाँ उसने स्वामी
विमलवाहन को देखा। त्रिःपरिक्रम्य तं भक्त्या तदासौ शरणोन्मुखः ।
मुनिं प्रोवाच भो स्वामिन् मयेदं कलुषं कृत्तम् ।।६७।। अन्वयार्थ – तदा = तब, तं = उन मुनिराज की. भक्त्या = भक्ति से, त्रिः
= तीन. परिक्रम्य = परिक्रमा करके, शरणोन्मुखः = उनकी