________________
२७६
=
·
गदाचमत्कृतिं तस्य स्वपक्षक्षयकारिणीम् । वीक्ष्यानिवारितां सद्यो भूद्रणपरान्मुखः ॥ ६२ ॥ अन्वयार्थ (वीरसेन: = राजा वीरसेन), तस्य = उस सोमप्रभ की. स्वपक्षक्षयकारिणी = अपने पक्ष का क्षय करने वाली, (च और), अनिवारितां = जिसे रोकना संभव नहीं ऐसी, गदाचमत्कृतिं = गदा के चमत्कार पूर्ण गतिशीलता को वीक्ष्य = देखकर, सद्यः = जल्दी, हि = ही, परान्मुखः परान्मुख या विमुख, अभूत् = हो गया । श्लोकार्थ - राजा वीरसेन सोमप्रभ की गदा संचालन की चमत्कारपूर्ण गतिशीलता जो स्वपक्ष अर्थात् वीरसेन के पक्ष का विनाश करने वाली थी और जिसे रोक पाना शक्य नहीं था, को देखकर जल्दी ही युद्ध से परान्मुख या विमुख हो गया। तदा कोटिभटस्सोमः प्रभो विजयलब्धितः । जगर्ज संयुगे वीरः स्थितस्तत्रादिराडिव । १६३ ।।
-
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
युद्ध के लिये सन्मुख हो गया। उसके बलवीर्य अर्थात् पराक्रम और तेज से तुलना करने वाला कोई नहीं हुआ। मृत्यु अर्थात् काल के समान भ्रमण करते हुये उसने जल्दी ही राजा वीरसेन के सैनिकों को गदा से मार डाला ।
—
अन्वयार्थ तदा = तब अर्थात् वीरसेन के युद्ध से परान्मुख हो जाने पर, विजयलब्धितः = विजयलाभ हो जाने से, तत्र = उस, संयुगे = युद्ध स्थल में, अद्रिराट् इव पर्वतराज मेरू के समान, स्थितः = खड़ा हुआ, कोटिभटः = कोटिभट, सोमप्रभः = सोमप्रभ नामक, वीरः = वीर योद्धा, जगर्ज गरजने लगा।
=
=
=
श्लोकार्थ – जब वीरसेन युद्ध से विमुख हो गया तो विजयोपलब्धि से प्रसन्न होकर उस युद्ध स्थल में पर्वतराज मेरू के समान स्थित हुआ वह वीरयोद्धा कोटिभट सोमप्रभ गरजने लगा ।
लक्षान्भृतमनुष्यांश्च
वीक्ष्य कोटिभदस्तदा ।
निर्विघ्नः प्राप्तवैराग्यमात्मानं धिक् चकार सः ।।६४ ।। अन्वयार्थ - तदा = तभी, लक्षान् = लाखों, मृतमनुष्यान् = मरे हुये मनुष्यों