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________________ नवमः wwwwwww २७३ - राजा द्वारा, शुभा शुभकारिणी, यात्रा सम्मेदपर्वत की = = धर्मवर्धिनीं यात्रा, कृता = की गयी, तां = उस, मनोज्ञां मनोज्ञ, धर्मभाव को बढाने वाली यात्राकथां = यात्रा रूप कथा को, अनु = अनुसरण करके, वक्ष्ये = मैं कहता हूँ । आर्यखण्डे महाशुचिः । श्लोकार्थ उस सोमप्रभ राजा ने सम्मेदशिखर की शुभकारिणी तीर्थयात्रा की थी । कवि कहता है कि मैं भी मनोज्ञ और धर्म भावना को बढ़ाने वाली उस यात्रा की कथा का अनुसरण करके. कुछ कहता हूं। जम्बूभरतसुक्षेत्रे सुमौक्तिकाख्यश्च विषयस्तत्र श्रीपुरमुत्तमम् । । ५३ ।। अन्वयार्थ जम्बूभरतसुक्षेत्र जम्बूद्वीप के भरत नामक सुन्दर क्षेत्र में, आर्यखण्डे = आर्यखण्ड में सुमौक्तिकाख्यः सुमौक्तिक नामक महाशुचिः = अत्यंत पवित्र, विषयः ( आसीत् = था), च = और तत्र = उस देश में, उत्तमं श्रेष्ठ, श्रीपुरं = श्रीपुर नामक नगर ( आसीत् = था)। एक देश, 1 — = - = = श्लोकार्थ जंबूद्वीप के भरतक्षेत्रवर्ती आर्यखण्ड में सुमौक्तिक नामक एक अत्यंत पवित्र देश था जिसमें श्रीपुर नामक सुन्दर और श्रेष्ठ नगर था। हेमप्रभो बभूवारिमन् पुरे भूपतिरूत्तमः । तत्प्रिया विजयाख्याता कान्त्या सौदामिनीव सा ||५४ || अन्वयार्थ - अस्मिन् = = इस, पुरे = नगर में, उत्तमः = श्रेष्ठ, भूपतिः राजा, हेमप्रभः = हेमप्रभ, बभूव = हुआ था, तप्रिया उसकी प्रिय रानी, विजया विजया (आसीत् = थी), सा = वह रानी, कान्त्या = कान्ति अर्थात् शोभा से, सौदामिनी इव बिजली की चमक के समान, आख्याता = कही गयी है | = = = श्लोकार्थ - इस नगर में श्रेष्ठ राजा हेमप्रभ हुआ था उसकी प्रिय रानी विजया थी वह शोभा से बिजली की चमक के समान कही गयी है।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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