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नवमः
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- राजा द्वारा, शुभा शुभकारिणी, यात्रा सम्मेदपर्वत की
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धर्मवर्धिनीं
यात्रा, कृता = की गयी, तां = उस, मनोज्ञां मनोज्ञ, धर्मभाव को बढाने वाली यात्राकथां = यात्रा रूप कथा को, अनु = अनुसरण करके, वक्ष्ये = मैं कहता हूँ ।
आर्यखण्डे महाशुचिः ।
श्लोकार्थ उस सोमप्रभ राजा ने सम्मेदशिखर की शुभकारिणी तीर्थयात्रा की थी । कवि कहता है कि मैं भी मनोज्ञ और धर्म भावना को बढ़ाने वाली उस यात्रा की कथा का अनुसरण करके. कुछ कहता हूं। जम्बूभरतसुक्षेत्रे सुमौक्तिकाख्यश्च विषयस्तत्र श्रीपुरमुत्तमम् । । ५३ ।। अन्वयार्थ जम्बूभरतसुक्षेत्र जम्बूद्वीप के भरत नामक सुन्दर क्षेत्र में, आर्यखण्डे = आर्यखण्ड में सुमौक्तिकाख्यः सुमौक्तिक नामक महाशुचिः = अत्यंत पवित्र, विषयः ( आसीत् = था), च = और तत्र = उस देश में, उत्तमं श्रेष्ठ, श्रीपुरं = श्रीपुर नामक नगर ( आसीत् = था)।
एक देश,
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श्लोकार्थ जंबूद्वीप के भरतक्षेत्रवर्ती आर्यखण्ड में सुमौक्तिक नामक एक अत्यंत पवित्र देश था जिसमें श्रीपुर नामक सुन्दर और श्रेष्ठ
नगर था।
हेमप्रभो
बभूवारिमन्
पुरे भूपतिरूत्तमः । तत्प्रिया विजयाख्याता कान्त्या सौदामिनीव सा ||५४ || अन्वयार्थ - अस्मिन्
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इस, पुरे = नगर में, उत्तमः = श्रेष्ठ, भूपतिः राजा, हेमप्रभः = हेमप्रभ, बभूव = हुआ था, तप्रिया उसकी प्रिय रानी, विजया विजया (आसीत् = थी), सा = वह रानी, कान्त्या = कान्ति अर्थात् शोभा से, सौदामिनी इव बिजली की चमक के समान, आख्याता = कही गयी है |
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श्लोकार्थ - इस नगर में श्रेष्ठ राजा हेमप्रभ हुआ था उसकी प्रिय रानी विजया थी वह शोभा से बिजली की चमक के समान कही गयी है।