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________________ २७२ सुप्रभाख्यो धन्यकूटः अनंतमहिमादीप्तो पुष्पदंतमहेशितुः | भाति सम्मेदपर्वते । । ४६ ।। अन्वयार्थ – पुष्पदंतमहेशितुः = भगवान् पुष्पदंत की, अनंतमहिमादीप्तः अनंत महिमा से प्रदीप्त, सुप्रभाख्यः = सुप्रभनामक, धन्यकूटः = धन्यता को प्राप्त कूट. सम्मेदपर्वते सम्मेदशिखर पर्वत पर, भाति = सुशोभित होता है । श्लोकार्थ - महान् ईश भगवान् पुष्पदंत की अनंत महिमा से प्रदीप्त और धन्य हुआ सुप्रभनामक कूट उम्मेदशिखर पर्वत पर आज भी सुशोभित हो रहा है । अन्वयार्थ पुष्पदंतादनूक्तं यत् तदेकोनशतकोट्यः । लक्षाणां नवतिः सप्तसहस्राणि चतुश्शतं ॥ ५० ॥ अशीतिः गणिता एवं मुनयो दिव्यचक्षुषः । तस्मात्सुप्रभकूटाच्च पदं नैःश्रेयसं गताः ।। ५१ ।। — श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = = यत् = जो, उक्तं = कहा गया, तत् वह एवं इस प्रकार, पुष्पदंतात् अनु पुष्पदंत के बाद, एकोनशतकोट्यः - निन्न्यानवें करोड़, लक्षाणां नवतिः = नब्बे लाख, सप्तसहस्राणि - सात हजार, चतुश्शतम् = चार सौ, च = और, अशीतिः अरसी, गणिताः = संख्या में परिगणित, दिव्यचक्षुषः = केवलज्ञानी, मुनयः = मुनिराज तस्मात् = उस, सुप्रभकूटात् = सुप्रभकूट से नैःश्रेयसं पूर्णकल्याणप्रद मोक्ष, पदं स्थान को, गताः = चले गये । = 1 — == = = श्लोकार्थ – जो शास्त्रों में कहा है वह इस प्रकार है कि भगवान् पुष्पदंत के बाद निन्यानवें करोड़ नब्बे लाख सात हजार चार सौ अस्सी की संख्या में परिगणित केवलज्ञान चक्षु वाले मुनिराज उस सुप्रभकूट से मोक्षपद को प्राप्त हुये । वन्देत सुप्रभं कूटं यो भक्त्या मानवोत्तमः । कोटिप्रोषधनाम्ना स व्रतानां फलमश्नुयात् ।।५२११ अन्वयार्थ ततः = उसके बाद, सोमप्रभाख्येन = सोमप्रभ नामक राज्ञा
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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