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________________ 1 नवमः २६७ वाले, महान् कान्ति से युक्त, दो लाख पूर्व की आयु वाले और एक सौ धनुष ऊँची काया को धारण करते थे । अमेयबलश्च बालकेलिरगोः। तदा । । ३४ । । = पञ्चाशदुक्तसाहस्रपूर्वोक्तायुर्गतं यौवनागमने तस्मै जनको राज्यमपर्यत् । राज्यं सम्प्राप्य देवेशः स्वविभूत्या समुदज्वलत् ।। ३५ ।। बालक्रीड़ाओं में लगे हुये प्रभु की, च = और, अमेयबलभर्तुः = असीमित बल के धारी स्वामी की, (यदा == जब), पञ्चाशदुक्तसाहस्र पूर्वोक्तायुः = पचास हजार पूर्व आयु, गतं = बीत गयी, तदा = तब, यौवनागमने का आगमन होने पर, जनक: = पिता ने तस्मै प्रभु के लिये, राज्यम् = राज्य, अपर्यत् = अर्पित कर दिया, देवेशः - देवताओं के स्वामी भगवान्, राज्य = राज्य को, सम्प्राप्य = पाकर, स्वविभूत्या = अपनी विभूति से समुदज्वलत् अच्छी तरह व अत्यधिक प्रकाशमान हुये । युवावस्था = अन्वयार्थ - बालकेलिरतप्रभोः = श्लोकार्थ - बालक्रीडाओं में लगे हुये प्रभु की और असीमित बल के स्वामी उन भगवान् की पचास हजार पूर्व आयु बीतं गयी तो युवावस्था आने पर पिता ने उन्हें राज्य दे दिया। राज्य पाकर प्रभु अपनी विभूति से अच्छी तरह व अत्यधिक प्रकाशमान् हुये । विभूतिमधरीकृत्य शक्रादीनामपि प्रभुः । स्ववैभवेनातुलेन = प्रजाः शश्वदपालयत् ||३६|| = = = अन्वयार्थ - प्रभुः पुष्पदंत प्रभु ने शक्रादीनां इन्द्र आदि की, अपि भी, विभूतिम् विभूतिसम्पदा को अधरीकृत्य हीन - हल्का करके, अतुलेन = अतुलनीय, स्ववैभवेन = अपने वैभाव से, शश्वत् = निरन्तर प्रजाः = पालन किया। प्रजा का, अपालयत् - Ad श्लोकार्थ पुष्पदंत प्रभु ने इन्द्र आदि की भी विभूति को कम करके अपने अतुलनीय वैभव से निरन्तर प्रजा का पालन किया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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