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श्लोकार्थ
भातुरङ्गे समर्प्यथ देवं बालस्वरूपिणम् । जगाम त्रिदशैस्सार्धं सहर्षस्सोऽमरावतीम् ||३१||
अन्वयार्थ अथ = फिर, बालस्वरूपिणं = बाल स्वरूप वाले, देवं भगवान् को, मातुः = माता की, अङ्के = गोद में, समर्प्य समर्पित करके, त्रिदशैः = देवों के सार्धं = साथ, सहर्षः हर्ष युक्त होता अमरावती को जगाम = चला गया।
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हुआ, सः वह इन्द्र, अमरावती
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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नवकोटिसमुद्रोक्त्ताऽवसरव्यत्यये
चन्द्रप्रभात्तम्यन्तर्वर्त्यायुस्स
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फिर बालस्वरूपी भगवान् को माता की गोद में समर्पित करके देवों के साथ हर्ष युक्त होते हुये वह इन्द्र अमरावती को चला
गया।
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प्रभोः ।
बभूव हि ।।३२।।
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अन्वयार्थ – चन्द्रप्रभात् तीर्थकर चन्द्रप्रभ से, नवकोटिसमुद्रोक्तावसरव्यत्यये = यथोक्त प्रमाण वाले नव करोड़ सागर का काल बीत जाने पर, तदन्तर्वर्त्यायुः - उस नौ करोड सागर के भीतर ही परिगणित है आयु जिनकी सः वह पुष्पदंत प्रभु बभूव
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हुये थे।
अन्वयार्थ – सः
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श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ से नव करोड सागर का काल बीत जाने पर उस काल में ही अन्तर्भूत आयु वाले वह पुष्पदंत प्रभु हुये
थे ।
सः कुन्दकलिकाभासः श्वेतवर्णो महाद्युतिः । द्विलक्षमितपूर्वायुः शतकोदण्डदेहभृत् ।। ३३ ।।
सः = वह पुष्पदंत, कुन्दकलिकाभासः = कुन्दपुष्प के समान, श्वेतवर्णः = श्वेत रंग वाले, महाद्युतिः = महान् कान्ति वाले, द्विलक्षमितपूर्वायुः दो लाख पूर्व की आयु वाले, (च = और), शतको दण्डदेहभृत् = एक सौ धनुष ऊँची देह को धारण करने वाले, ( आसीत् = थे) ।
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श्लोकार्थ वह पुष्पदंत भगवान् कुन्दपुष्प की आभा के समान श्वेत रंग