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नमः
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श्लोकार्थ - अहमिन्द्र के पद पर स्थित रहता हुआ, उत्कृष्ट गुणों से
सुशोभित और सुख से आयु बिताने वाला वह देव मात्र छह माह की शेष आयु वाला हुआ | तदा जम्बूमतिद्वीपे क्षेत्रे भारतिके शुभे ।
कच्छदेशे सदा भाति काकन्दीनगरं शुभम् ।।१७।। अन्ययार्थ – तदा = उस समय, जम्बूमति = जम्बूवृक्ष वाले, द्वीपे = द्वीप
में, भारतिके = भरत क्षेत्र स्थित, शुभे == शुभ अर्थात् आर्य, क्षेत्रे = क्षेत्र में, कच्छदेशे = कच्छदेश में, शुभं = शुभ-सुन्दर, काकन्दीनगरं = काकन्दी नामक नगर, सदा = हमेशा, भाति
= सुशोभित होता है। श्लोकार्थ – उस समय जम्बूद्वीपवर्ती भरतक्षेत्र के आर्य क्षेत्र में कच्छदेश
है जिसमें काकन्दी नामक एक शुम नगर सदा शोभायमान
होता रहता है। इक्ष्वाकुवंशे तत्पुर्यां काश्यपे गोत्र उत्तमे ।
सुग्रीवो नाम राजाभूत् धर्मात्मा भाग्यवारिभिः ।।१८।। अन्वयार्थ – तत्पुर्याम् = उस नगरी में, इक्ष्वाकुवंशे = इक्ष्वाकुवंश में, उत्तम
= श्रेष्ठ, काश्यपे = काश्यप, गोत्रे = गोत्र में, भाग्यवारिधिः = विपुल भाग्यवाला, धर्मात्मा = धर्माचरणशील, सुग्रीवः =
सुग्रीव. नाम = नामक, राजा = राजा, अभूत् = हुआ था। श्लोकार्थ - उस काकन्दी नगर में इक्ष्वाकु कुल और श्रेष्ठ काश्यप गोत्र
में उत्पन्न एक सुग्रीव नामक राजा हुआ था, जो अत्यधिक भाग्यशाली और धर्माचरणशील था। जयरामा तस्य देवी रूपसौभाग्यशालिनी ।
पत्युर्मनोहरा नित्यं स्वैरत्यद्भुतसद्गुणैः ।।१६।। अन्वयार्थ – तस्य = उस राजा की, जयरामा = जयरामा नामक, देवी
- रानी, रूपसौभाग्यशालिनी = रूपवती और सौभाग्यशालिनी. (च = और). स्वैः = अपने. अद्भुतसदगुणः = चमत्कारिक सद्गुणों से, नित्यं = हमेशा, पत्युः = पति के. मनोहरा = मन को हरने वाली, (आसीत् = थी)।