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________________ २६० श्री राम्मेदशिखर माहात्म्य सूर्य के समान जाज्वल्यमान और अपने आनन्दानुभव से जनित संतोष से पूर्ण वह अहमिन्द्र बीस हजार वर्ष ऊपर हो जाने पर अर्थात् बीत जाने पर मनोद्भव अमृत स्वरूप निर्मल आहार ग्रहण करता था। पक्षेषु विंशतितमेषु स्वयं परिगतेषु सः । न्यश्वसत् परमानन्दात् सिद्धध्यानपरायणः ।। १४ ।। षष्ठनारकपर्यन्तं तत्स्थानादवधिं दधन् । सर्वकार्यसमर्थोऽसावुत्कृष्टसुखमन्वभूत् ।। १५ ।। अन्वयार्थ - विंशतितमेषु = बीस, पक्षेषु = पखवाड़े, परिगतेषु = बीतने सांस लेता था, पर, सः = वह स्वयं स्वयं न्यश्वसत् तत्स्थानात् = पन्द्रहवें स्वर्ग से षष्ठनारकपर्यन्तं = छटवें नरक तक, अवधिं = अवधिज्ञान को, दधन् = धारण करते हुये, सर्वकार्यसमर्थः = सभी कार्यों के करने में समर्थ, परमानन्दात् = परन अानंद को उनमोनाने से, सिद्धध्यानपरायणः = सिद्धपरमेष्ठियों के ध्यान में लगे हुये, असौ = उस अहमिन्द्र ने उत्कृष्टसुखं उत्कृष्टसुख का, अन्चभूत् = अनुभव किया। बीस पक्ष अर्थात् पखवाड़े बीत जाने पर वह देव स्वयमेव सांस लेता था तथा उस अहमिन्द्र ने छठवें नरक तक की मर्यादा वाले अवधिज्ञान को धारण किया, सभी कार्यों के करने में समर्थ तथा परम आनंद की प्राप्ति के कारण सिद्ध परमेष्ठियों के ध्यान में लगे हुये उसने उत्कृष्ट सुख का अनुभव किया। उत्कृष्टगुणसंयुक्तो व्यतीतायुस्सुखेन सः । षण्मासकावशिष्टायुरभवत्तत्पदे स्थितः ||१६|| श्लोकार्थ - = H = 1 अन्वयार्थ -- उत्कृष्टगुणसंयुक्तः = उत्कृष्ट गुणों से युक्त, सुखेन= सुख से, व्यतीतायुः - आयु विताने वाला, सः = वह देव, तल्पदे अहमिन्द्र पद पर स्थितः = स्थित रहता हुआ, षण्मासकावशिष्टायुः = छह मास मात्र शेष आयु वाला. अभवत् = हो गया ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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