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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य आत्मानमेकं सर्वेषु ज्ञात्वा भूतेषु भूपतिः । पुद्गलाद् भिन्नभ्ममलं विरक्तोऽभूत्स चैहिकात् ।।८।। राज्यं धनदपुत्राय दत्त्वा बहुनृपैः सह । दीक्षां समगृहीद् गत्वा दनं किल तपोरूचिः ||६|| अन्वयार्थ – मुनिः = मुनिराज ने स्वागमोदितं = अपने आगम में कहे अनुसार, त्रयोदशभिं तेरह कार का सार चारित्र सुनाया, तन्निषम्य = = इस लोक को. भूपाय = राजा के लिये श्रावयामास = उसे सुनकर, सः वह राजा, प्रवृद्धः = वृद्धि को प्राप्त हुआ, च = और, सर्वेषु सभी भूतेषु प्राणियों में, एक - एक जैसे ही, आत्मानं = आत्मा को, पुद्गलात् = पुद्गल से, भिन्नम् भिन्न, पृथक्, अमलं = मलरहित, ज्ञात्वा = जानकर, सः = • वह, भूपतिः राजा, ऐहिकात् संबन्धी राज्यादिक से विरक्तः = विरक्त, अभूत और, धनदपुत्राय = धनद नामक पुत्र को, राज्यं = राज्य को, दत्वा = देकर, तपोरूचिः = तपश्चरण करने की रूचि वाले उस राजा ने, वनं वन में, गत्वा = जाकर, बहुनृपैः = अनेक राजाओं के, सह = साथ, दीक्षां = मुनिदीक्षा को, समगृहीत् = ग्रहण कर लिया। हो गया, च २५८ = — = H = = = = = = श्लोकार्थ मुनिराज ने जिनागम में कहे अनुसार तेरह प्रकार का चारित्र राजा को सुनाया जिसे सुनकर राजा वृद्धि को प्राप्त हुआ और सभी प्राणियों में एक जैसे आत्मा को पुदगल से भिन्न और निर्मल जानकर वह राजा राज्यादि ऐहिक सुख से विरक्त हो गया। एकादशाङ्गदृग्भूत्वा तद्वत्षोडशभावनाः | भावयित्वा बवन्धासौ गोत्रं तैर्थकरं परम् ||१०|| = अन्वयार्थ - एकादशाङ्गदृक् = ग्यारह अगों को जानने वाला, भूत्वा = होकर, तद्वत् = उसके समान, षोडशभावनाः = सोलह भावनायें, भावयित्वा = भाकर, असौ उन मुनिराज ने परमं = उत्कृष्ट, तैर्थकरं = तीर्थङ्कर नामक गोत्रं = पुण्यविशेष को, बबन्ध = बांध लिया । =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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