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अथ नवमोऽध्यायः अथ मोक्षश्रियोपेतं सुरासुरनिषेवितम्।
पुष्पदंतप्रभुं भक्या वन्दे मकरलाञ्छनम् ।।१।। अन्वयार्थ - अथ = इसके बाद, मोक्षश्रियोपेतं = मोक्षलक्ष्मी से युक्त,
सुरासुरनिषेवितं = सुर और असुरों से सेवित. मकरलाञ्छनं = मकर के चिन्ह से चिन्हित, पुष्पदंतप्रभु तीर्थकर पुष्पदंत की, अहं - में, भक्त्या = भक्ति से. वन्दे = नमस्कार
करता हूं। श्लोकार्थ – चन्द्रप्रभ भगवान् का वर्णन करने के बाद अब मैं मोक्षलक्ष्मी
___ से युक्त. देवताओं और राक्षसों से सेवित एवं मकर के चिन्ह
से चिन्हित पुष्पदंत भगवान् को प्रणाम करता हूं। पुष्करार्धवरद्वीपे प्रदीप्ते पूर्वमन्दरे। सीतापश्चिमभागेऽस्ति विषयः पुष्कलावती ।।२।। पुण्डरीकपुरे तत्र महापद्माभिधो नृपः ।
अखण्ड राज्यमकरोत् स अरक्षत् पुत्रवत्प्रजाः ।।३।। अन्ययार्थ – पुष्करार्धवरद्वीपे = पुष्करार्धवरद्वीप में, प्रदीप्ते = जाज्वल्यमान,
पूर्वमन्दरे = पूर्वमन्दर पर, सीतापश्चिमभागे = सीता नदी के पश्चिम भाग में. पुष्कलावती = पुष्कलावती नामक, विषयः = देश, अस्ति = था, तत्र = उस देश में, पुण्डरीकपुरे = पुण्डरीक पुर में, महापदमाभिधः = महापद्म नामक, नृपः = राजा. अखण्डं = अखण्ड, राज्यं = राज्य, अकरोत् = करता था. सः = वह, प्रजाः = जनता को, पुत्रवत् = पुत्र के समान,
अरक्षत् = पालता था। श्लोकार्थ – पुष्करार्धवरद्वीप में जाज्वल्यमान मन्दर मेरू पर सीता नदी
के पश्चिम भाग में एक पुष्कलावती देश था। उस देश में पुण्डरीक पुर में महापद्म नामक राजा अखण्ड रूप से राज्य करता था वह प्रजा की रक्षा पुत्र के समान करता था।