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अष्टमा
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भक्तिभाव स, बटान्तललित = घटान्त ललित, कूट = कूट
की, ववन्दे = वन्दना की। श्लोकार्थ – इसके बाद उस राजा ने एक करोड़ बयालीस लाख संख्या
प्रमाण श्रेष्ठ मव्यों को साथ करके सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा की और भक्तिभाव से घटान्त अर्थात् घटाओं से
अन्तर्व्याप्त ललितकूट की वन्दना की। कोटिभव्यैः सह क्षोणिपतिवैराग्यभावसंयुतः । तत्रैव दीक्षितो भूत्वा चारणर्द्धिमयाप सः ।।७७ ।। पश्चादुग्रतपः कृत्वा केवलज्ञानवान्मुनिः ।
सार्धं पूर्वोक्तभव्यैस्स सिद्धालयमयाप हि | GE! अन्वयार्थ – कोटिभव्यैः = एक करोड़ भव्यों के, सह = साथ,
वैराग्यभावसंयुतः = वैराग्य भावना से युक्त, क्षोणिपतिः = राजा, तत्रैव = वहाँ ही, दीक्षितः = मुनि धर्म में दीक्षित, भूत्वा = होकर, सः = उन मुनिराज ने, चारण ऋद्धिं - चारणऋद्धि को. अवाप = प्राप्त कर लिया, पश्चात् = बाद में, उग्रतपः = उग्र तपश्चरण करके, मुनिः = मुनिराज, केवलज्ञानवान = केवलज्ञानी, (अभूत - हुये). सः = उन केवलज्ञानी मुनिराज ने. पूर्वोक्तभव्यैः = पूर्व में कहे भव्य जीवों के, साधू = साथ,
हि = ही, सिद्धालयं = सिद्धालय को, अवाप = प्राप्त हुये। श्लोकार्थ – एक करोड भव्य जीवों के साथ वैराग्य भावों से युक्त वह
राजा उसी ललितकूट पर मुनि धर्म में दीक्षित हो गया और उसने चारणऋद्धि को प्राप्त कर लिया फिर उग्र तपश्चरण करके केवलज्ञानी हुये और पूर्वोक्त भव्य जीवों के साथ ही निर्वाण चले गये। तत्कूटवन्दनाद्भव्यः गतिद्वयविवर्जितः।
षोडशप्रोषधानां हि व्रतानां फलमाप्नुयात् ।।७६ ।। अन्वयार्थ – तत्कूटवन्दात् = उस ललितकूट की वन्दना से, गतिद्वयविवर्जितः
= दो गतियों अर्थात् नरक और तिर्यञ्च गति से रहित, भव्यः = भव्य जीव. षोडशोषधानां = सोलह प्रोषध, व्रतानां = व्रतों का, फलं = फल, हि = निश्चय ही, आप्नुयात् = प्राप्त करे |