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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य प्रसिद्ध पुष्करद्वीपे चतुर्थे मेरूमन्दरे । तत्र पूर्वविदेहे च सीतापश्चिमदिक्तटे ||६|| विषये पुष्कलानां पुण्डीकाम्यसत्पुरे।
महासेनोऽभवद्राजा महाबलपराक्रमः ।।२।। अन्वयार्थ – प्रसिद्ध = विख्यात. पुष्करद्वीपे = पुष्करवर द्वीप में, चतुर्थे
- चौथे, मेरुमन्दरे = मेरुमन्दिर पर, तत्र = वहाँ, पूर्वविदेहे = पूर्व विदेह क्षेत्र में, च = और, सीतापश्चिमदिक्तटे = सीता नदी के पश्चिम दिशावर्ती तट पर, पुष्कलावत्यां = पुष्कलावती नामक, विषये = देश में. पुण्डरीकाख्यसत्पुरे = पुण्डरीक नामक सुन्दर नगर में, महाबलपराक्रमः = महान् बल और पराक्रम वाला, राजा = राजा. महासेनः = महासेन,
अभवत् = हुआ। श्लोकार्थ – सुप्रसिद्ध पुष्करद्वीप में चतुर्थमेरू मन्दर पर स्थित पूर्वविदेह
क्षेत्र में सीता नदी के पश्चिमदिशावर्ती तट पर पुष्कलावती देश है वहाँ पुण्डरीक नामक एक सुन्दर नगर है जिसमें महा बलवान् और पराक्रमी राजा महाबल राज्य करता था। राज्ञी तस्य महासेना शीलसौन्दर्यशालिनी।
पत्युः प्राणप्रिया देवी पत्यभिप्रायसाधनात् ।।३।। अन्वयार्थ - तस्य = उस महाबल राजा की, महासेना = महासेना नामक,
शीलसौन्दर्यशालिनी = शीलवती और सौन्दर्यशालिनी, राज्ञी = रानी, (आसीत् = थी), पत्यभिप्रायसाधनात् = पति के अभिप्राय को साधने वाली होने से, (सा = वह, देवी = रानी), पत्युः - पति के लिये, प्राणप्रिया = प्राणों से भी प्रिय. (आसीत्
= थी)। श्लोकार्थ – उस राजा महाबल राजा की महासेना नामक शीलवती और
सौन्दर्य से परिपूर्ण रानी थी वह रानी पति के अभिप्राय अनुसार कार्य साधने वाली होने से पति के लिये प्राणों से भी अधिक प्यारी थी।