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________________ अष्टमः अन्वयाथ श्लोकार्थ पञ्चपञ्चाशत् पराणि तथा पञ्चशतानि च । अन्वयार्थ चन्द्रप्रभविभुमनु ||५८ ॥ एतत्सङ्ख्योदीरिताश्च घटाललितात्कूटात् शुक्लध्यानं समाश्रिताः । केवलावगमाच्छुद्धा मुनयस्तत्पदं गताः ।। ५६ ।। चन्द्रमाम == चन्द्रप्रभ भगवान् के बाद. घटान्तललितात् - मेघों की घटाओं से अन्तर्व्याप्त ललित, कूटात् = कूट से चतुः पराकोट्यर्बुदाः = चार पराकोटि अर्थात् अरब, द्विसप्ततिकोट्यः = बहत्तर करोड़, अशीतिलक्षाः = अस्सी लाख, चतुरशीतिसहस्रकाणि = चौरासी हजार, पञ्चशतानि पाँच सौ पराणि = आगे तदुत्तर, पञ्चपञ्चाशत् = पचपन, एतत्संख्यो दीरिताः = इस संख्या से कहे गये, शुक्लध्यानं = शुक्लध्यान को, समाश्रिताः समाश्रित किये अर्थात् धारण किये हुये, केवलावगमात् केवलज्ञान से, शुद्धाः = शुद्ध, मोक्षस्थान को गताः = मुनयः = मुनिराज तत्पदं गये । 1 = = — = = २४१ पश्चाल्ललितदत्तेन गिरियात्रा कृता शुभा । तत्कथासङ्ग्रहं वक्ष्ये शृणुध्वं साधवो जनाः । । ६० ।। पश्चात् = भगवान् के मोक्ष गमन के बाद, ललितदत्तेन ललितदत्त द्वारा, शुभा शुभकारी, गिरियात्रा सम्मेदपर्वत तीर्थवन्दना, कृता = की, साधवो जनाः = हे साधु मनुष्यो !, शृणुध्वं = सुनो, तत्कथासग्रहं उस कथा के सारसंक्षेप को, वक्ष्ये - मैं कहता हूं। 1 चन्द्रप्रभु भगवान् के बाद मेघों की घटाओं से व्याप्त ललित कूट से चार अरब बहत्तर करोड़ अस्सी लाख चौरासी हजार पाँच सौ पचपन मुनिराज जो केवलज्ञान से शुद्ध और शुक्लध्यान के आश्रय वाले थे, मोक्ष स्थान को गये अर्थात् उन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया। 1 = श्लोकार्थ भगवान् के मोक्षगमन के बाद ललितदत्त ने शुभकारी सम्मेदशिखर की यात्रा की थी मैं कवि उसकी कथा का सार संक्षेप कहता हूं हे साधुजनो! तुम उसे सुनो।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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