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________________ २४६ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य हुये, यथा = जैसे, रविः = सूर्य, (नभसि = आकाश में), (शोभते = शोभित होता है)। श्लोकार्थ – मुनिराज को केवलज्ञान हो जाने के बाद इन्द्र की आज्ञा से देवों द्वारा बनाये गये परम आश्चर्य कारी समवसरण में स्थित भगवान् वैसे ही सुशोभित हुये जैसे सूर्य आकाश में शोभता है। यथोक्तदत्तसेनाख्यगणेन्द्राद्यैस्तदाखिलैः। पूजितो मुनिः सम्पृष्टः स दिव्यध्वनिमाकरोत् ।।५५ ।। अन्वयार्थ ... अखिलैः = सम्पूर्ण. यथोक्तदत्तसेनाख्यगणेन्द्राद्यैः = शास्त्रों में कहे गये अनुसार दत्तसेन नामक गणधर मुनिराजों आदि से, पूजिन :- पूजा किये जाते सुई. सुनिः - केवलज्ञानी भगवान्, सम्पृष्टः = पूछे गये, तदा = तब, सः = उन्होंने, दिव्यध्वनि -- दिव्यध्वनि को, आकरोत् = किया। श्लोकार्थ – दत्तसेन नामक शास्त्रोक्त गणधरों और अन्य मुनिराजों आदि द्वारा पूजे गये वह भगवान् पूछे गये तब उन्होंने दिव्यध्वनि द्वारा उपदेश दिया। घटान्तललिते कूटे सहस्रमुनिभिस्सह । शुक्लाष्टम्यां स भाद्रस्य निर्वाणपदमाप्तवान् ।।५६।। अन्वयार्थ । सः = उन्होंने, भाद्रस्य = भादों मास की, शुक्लाष्टम्यां - शुक्लाष्टमी के दिन, सहस्रमुनिभिः = एक हजार मुनियों के साथ, घटान्तललिते = घटाओं अर्थात् मेघों से व्याप्त ललित, कूटे = कूट पर, निर्वाणपदं = मोक्षपद को, आप्तवान् = प्राप्त किया। श्लोकार्थ – उन्होंने भाद्र मास की शुक्ला की अष्टमी को एक हजार मुनिराजों के साथ मेघाच्छन्न ललित कूट पर मोक्ष पद को प्राप्त कर लिया। चतुःपराकोट्यर्बुदा द्विसप्तति घ कोट्यः । अशीतिलक्षाश्चतुरशीतिसहस्रकाणि च ॥५७।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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