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________________ २४२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य की ऊँचाई एक सौ पचास धनुष प्रमाण थी। उन्होंने ढाई लाख पूर्व का काल बाल्यकाल की कौतुक क्रीड़ाओं में ही व्यतीत कर दिया। अपनी रूप लावण्य की सम्पदा से वे सभी का मन हरण करने वाले थे। इस प्रकार कमारकाल के चले जाने पर और यौवन अवस्था का आगम हो जाने पर उन्होंने अभिषेक पूर्वक पैतृक राज्य समादा प्राप्त कर ली। भूपासनसभासीनो भगवान् धर्मवारिधिः । न्यायतोऽखिलकार्याणि चकार सह मन्त्रिभिः ।।४३।। अन्वयार्थ – 'भूपासनसमासीनः = राजा के आसन पर बैठे. धर्मवारिधिः = धर्म के जानकार, भगवान् = चन्द्रप्रभु ने, मन्त्रिभिः = मंत्रियों के, सह = साथ, न्यायतः = न्याय मार्ग से, अखिलकार्याणि = सम्पूर्ण कार्य, चकार = किये। __ श्लोकार्थ – राज्य सिंहासन पर बैठे हुये धर्म के जानकार भगवान् तीर्थकर चन्द्रप्रभु ने मंत्रियों के साथ न्यायपूर्वक सारे कार्य किये। शक्रादप्यधिकं सौख्यं प्रतिक्षणमसौ प्रभुः । अन्चभूद्विविधं पुण्यैः पूर्वजन्मनि सञ्चितैः ।।४४।। अन्वयार्थ – पूर्वजन्मनि = पूर्वजन्म में, सञ्चितैः = संचित, पुण्यैः = पुण्यों के कारण, असौ = उस. प्रभुः = राजा ने. प्रतिक्षणं - हर समय, शक्रात् = इन्द्र से. अपि = भी, अधिक = अत्यधिक, विविधं = अनेक प्रकार का, सौख्यं = सुख को, अन्वभूत् = भोगा। श्लोकार्थ – पूर्व जन्म में संचित पुण्यों के कारण उस राजा ने हर समय इन्द्र से भी अधिक अनेक प्रकार का सुख भोगा। कदाचित्सौधमारूय सुखासीनः प्रजापतिः । खादुल्कापातमालोक्य विरक्तोऽभूत् स तत्क्षणात् ।।४५।। __ अन्वयार्थ – कदाचित् = किसी दिन, सौधम् = महल पर, आरुह्य = चढ़कर, सुखासीनः = सुख से बैठा हुआ. सः = वह, प्रजापतिः
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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