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________________ अष्टमः अन्वयार्थ चैशानेन्द्रसमन्वितः । सौधर्मन्द्रस्तदागत्य तमुपादाय देवेशं जगाम कनकाचलम् ||३३|| तदा = तब अर्थात् तीर्थकर पुत्र का जन्म होने पर, ऐशान स्वर्ग के इन्द्र सहित, सौधर्मेन्द्रः ऐशानेन्द्रसमन्वितः - श्लोकार्थ = = सौधर्म इन्द्र, (तत्र वहाँ), आगत्य = आकर देवेशं = उन, देवताओं के स्वामी तीर्थकर बालक को आदाय = ग्रहण करके, कनकाचलं स्वर्णमय मेरु पर्वत या सुमेरू पर, जगाम = चला गया। H - २३६ श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर पुत्र का जन्म हो जाने पर तभी सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र ऐशान स्वर्ग के इन्द्र के साथ वहाँ आकर और उन तीर्थकर बालक को लेकर स्वर्णमय सुमेरू पर्वत पर चला गया। = तत्रासौ कानकैर्कुम्भैः क्षीराब्धिजलपूरितैः । देवमस्नापयद् भक्त्या जयशब्दं समुच्चरन् ।।३४।। अन्वयार्थ - तत्र = सुमेरू पर्वत पर असौ = उस इन्द्र ने जयशब्दं = जय-जयकार शब्द, समुच्चरन् = बोलते हुये, भक्त्या = भक्ति से, क्षीराब्धिजलपूरितैः क्षीरसागर के जल से भरे हुये, कानकैः = स्वर्ण निर्मित, कुम्भैः कलशों से, देवं तीर्थङ्कर बालक का अस्नापयत् = स्नान या अभिषेक किया । = = - तत्रैव उस सुमेरू पर्वत पर उस इन्द्र ने भक्ति भाव से जय जय शब्दों का उदघोष करते हुये क्षीरसागर के जल से भरे हुये स्वर्ण निर्मित कलशों से भगवान का अभिषेक किया। पुनरागत्य यत्राभूदीश्वरोदयः । तं दिव्यवस्त्राभरणैः संपूज्यासौ नृपाङ्गणे । । ३५ ।। तदग्रे ताण्डवं कृत्वा साङ्गहारं महाद्भुतम् । चन्द्रप्रभेति देवस्य नामोच्चार्य प्रसन्नधीः ||३६|| लक्ष्मणाङ्के प्रभुं प्रेम्णा संस्थाप्य सह देवतैः । मुहुः प्रणम्य देवेशं देवेशोऽगात्सुरालयम् ।। ३७ ।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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