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________________ अष्टमः २३७ यक्षैः = यक्षों से, सहितः = होता हुआ, मेघवत् -- मेघ के समान, षाण्मासिी = छह माह तक, रत्नवृष्टिं : रत्नों की बरसात, चकार = की। श्लोकार्थ - उस राजा की शुभ लक्षणों वाली लक्ष्मणा नाम की एक रानी थी। जिसके महल में इन्द्र की आज्ञा से आकाश में स्थित होकर इन्द्र नगरी अलका के कोष के स्वामी कुबेर ने अपने यक्षों से सहित होकर वैसे ही छह माह तक रत्नों की वर्षा की जैसे अन्य सहवर्ती बादलों से युक्त होकर बादल पानी बरसाते हैं। एकदा लक्ष्मणादेवी चैत्रमासे सितेतरे । पञ्चम्यां शुभनक्षत्रे ज्येष्ठानाम्नि प्रभातके ||२८|| सुप्ता विचित्रपर्यङ्क स्वप्नान् षोडश चैक्षत । स्वप्नान्ते तन्मुखाम्भोजमविशन्मत्तवारणः ।।२६।। अन्वयार्थ – एकदा = एक दिन, चैत्रमासे = चैत्र मास में, सितेतरे = कृष्ण पक्ष में, पञ्चम्यां = पञ्चमी में. ज्येष्ठानाम्नि = ज्येष्ठा नामक, शुभनक्षत्रे = शुभनक्षत्र में, प्रभातके = प्रभात बेला अर्थात् रात्रि के अंतिम प्रहर में. विचित्रपर्य? = विचित्र पलंग पर, सुप्ता - सोयी हुयी, लक्ष्मणादेवी = लक्ष्मणा रानी ने. षोडश = सोलह, स्वप्नान् = स्वप्नों को. ऐक्षत - देखा, च = और, स्वप्नान्ते = स्वप्न दर्शन के अन्त में, मत्तवारण: = एक मदोन्मत्त हाथी, तन्मुखाम्भोजम् = उस रानी के मुख रूपी कमल में, अविशत् = प्रविष्ट हुआ। श्लोकार्थ – एक दिन चैत्र कृष्णा पंचमी को ज्येष्ठा नामक शुभनक्षत्र में प्रभातकाल अर्थात् रात्रि के अंतिम प्रहर में अपने रत्न खचित आश्चर्यकारी पलंग पर सोती हुई लक्ष्मणा रानी ने सोलह स्वप्न देखे तथा स्वप्न देखने के अंत में एक मदोन्मत्त हाथी अपने मुख कमल में प्रविष्ट हुआ- यह देखा । प्रबुद्धेयं विलोक्याध मता सा पत्युरन्तिकम् । तस्मात्स्वप्नफलं श्रुत्वा जहर्षातीव मानसे ।।३०।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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