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________________ सप्तमः २२५ श्लोकार्थ – राजा ने अपने पुत्र सुप्रभ के लिये राज्य देकर बत्तीस लाख ___ मनुष्यों के साथ उसी प्रभासकूट पर मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। मुनिमार्गानुसारी सः विरक्त्तो विश्वमार्गतः । तपः प्रभावतः कृत्वा क्षयं वै घातिकर्मणाम् ।।१७।। केवलज्ञानसम्पन्नस्तीा घोरभवाम्बुधिम् । मोहशत्रु निनिर्जिय प्रामास्सिद्धि मुनिः ।।६।। अन्वयार्थ – विश्वमार्गतः = सभी मार्गों से. विरक्तः = विरक्त होकर, सः = वह, मुनिमार्गानुसारी = मुनि मार्ग का अनुसरण कर, तपःप्रभावात् = तपश्चरण के प्रभाव से. घातिकर्मणां = घातिया कर्मों का, क्षयं = क्षय, कृत्वा = करके. मोहशत्रु - मोहशत्रु को, विनिर्जित्य = जीतकर, केवलज्ञानसम्पन्नः = केवलज्ञान से सम्पन्न, (अभूत् = हो गये), घोरभवाम्बुधिम् = घोर संसार सागर को, तीर्चा = पार करके, वै = निश्चित ही, अयं = इन, मुनिः = केवलज्ञानी मुनि ने, सिद्धिं = सिद्धि को, प्राप्तः = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ -- मुनि मार्ग के अलावा सभी मार्गों से विरक्त होकर केवल मुनि मार्ग का अनुसरण करते हुये वे तप प्रभाव से सभी घातिकर्मों का क्षय करके और मोह शत्रु को पूर्णतः जीतकर केवलज्ञान से सम्पन्न हो गये तथा घोर संसार सागर को पार करके इन केवलज्ञानी मुनिराज ने निश्चित ही सिद्ध पद को प्राप्त कर लिया। तेन षोडशलक्षोक्ताः सार्ध मुनियरा बुधाः । मुक्तिं प्रभासकूटाच्च केवलावगमाद्गताः ।।१६।। अन्वयार्थ – तेन = उनके, सार्धं = साथ, षोडशलक्षोक्ताः = सोलह लाख, मुनिवराः = मुनिराज, केवलावगमात् = केवलज्ञान होने से, बुधाः = केवलज्ञानी परमात्मा, प्रभासकूटात् = प्रभासकूट से, मुक्तिं = मोक्ष को, गताः = गये।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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