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________________ २२४ श्री सम्मेदशिखर माहात्य तत्क्षणात्कुष्ठरोगस्य न भूत इव चाभवत् । बुद्ध्वा प्रभावमाहात्म्यं विरक्तोऽभूत्स राज्यतः ।।५।। अन्वयार्थ – तच्छुत्वा = मुनि के वचन सुनकर, हर्षपूर्णः = हर्ष से भरा हुआ, असौ = वह, यथा = जिस प्रकार, शिखरिणः = शिखर की, यात्रा = यात्रा, (भवेत् = होवे), (तथा = उसी प्रकार), संघेन = संघ के, सहितः = साथ, गतः = गया। तत्र = वहाँ, गत्वा = जाकर, सुभावक: = अच्छे भावों वाले उसने, गिरेः = पर्वत की. प्रभासकूट = प्रभास कूट को, अभिवन्द्य = नमस्कार करके, तं = उन, पूज्यं = पूज्य, जिनेश्वरं = जिनेन्द्र भगवान् को, अष्टधापूजया = आठ प्रकार के द्रव्यों से युक्त पूजा द्वारा, गदशान्तये = रोग शान्ति के लिये, प्रपूज्य = पूजा करके, (हर्षान्चितोऽभूत् = हर्ष युक्त हुआ), च = और, तत्क्षणात् = उसी समय, सः = वह, कुष्ठरोगः = कोढ़ रोग, न भूत इव = नहीं हुये के समान, अभवत् = हो गया। सः = तद राजा. प्रभासमाहार - भासकर की महिमा को, बुद्धवा = जानकर, राज्यतः = राज्य से, विरक्तः = विरक्त, अभूत् = हो गया। श्लोकार्थ – मुनिराज के उपदेश को सुनकर हर्ष से मरा वह राजा संघ सहित वैसे ही शिखर जी की यात्रा के लिये गया जैसे यात्रा करने की विधि है। वहाँ जाकर और सद्भावों से युक्त होकर उसने प्रभास कूट की वन्दना की और वहाँ पूज्य परमात्मा उन सुपार्श्वजिनेश्वर की अष्टविध द्रव्यों से पूजा की। उसका वह कुष्ठरोग उसी समय नहीं हुये के समान हो गया। तब वह राजा प्रभास कूट की महिमा जानकर राज्य से विरक्त हो गया। द्वात्रिंशल्लक्षमनुजैः सह तत्रैव भूपतिः । राज्यं सुप्रभपुत्राय दत्त्वा दीक्षामग्रहीत् ।।१६।। अन्वयार्थ - भूपतिः = राजा ने. सुप्रमपुत्राय = सुप्रम नामक पुत्र के लिये, राज्यं = राज्य को, दत्त्वा = देकर, तत्रैव = उसी प्रभास कूट पर, द्वात्रिंशल्लक्षमनुजैः = बत्तीस लाख मनुष्यों के. सह = साथ, दीक्षा = मुनि दीक्षा. अग्रहीत् = ग्रहण कर ली।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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