________________
सप्तमः
श्लोकार्थ
अन्वयार्थ
राजा की बात सुनकर मुनिराज उससे बोले- हे राजन्! अब तुम अपना पूर्व भव सुनो। इसी नगर में एक सोमदत्त नामक ब्राह्मण रहता था वह बहुत काल से बहुत सारी विद्याओं के अभिमान से पूर्ण था । निश्चित ही उस पण्डित ने किन्हीं मुनिराज को देखकर भी नमस्कार नहीं किया । ग्रीष्मर्तावेकदाहारनिमित्तं कश्चिन्मुनिस्समायातो भव्यो भव्यजनार्चितः । । ८० ।। एकदा = एक दिन, ग्रीष्मत ग्रीष्म ऋतु में, तपसि = तपश्चरण में स्थितः = रत, भव्यजनार्चितः - भव्यजनों द्वारा पूजा किये जाते हुये, कश्चित् = कोई, भव्यः = भव्य मुनिः मुनिराज, आहारनिमित्तं आहार के हेतु से (तत्र = वहाँ),
तपसि स्थितः ।
=
=
.
समायातः =
आये ।
श्लोकार्थ एक दिन ग्रीष्मकाल सम्बंधी तपश्चरण में रत तथा भव्यजनों से पूजित कोई भव्य मुनिराज आहार हेतु वहाँ उस नगर में आये ।
अन्वयार्थ
—
—
—
२१६
से कलुषित चित्त वाले, सः = उस, पण्डितः = पण्डित ने, कञ्चिद् = किन्हीं मुनिं = मुनि को प्रेक्ष्य देखकर, अपि भी, नमस्कार किया । नहीं व्यधात्
=
.
ननस्काए : = =.
==
—
=
=
=
श्रेष्ठी तत्र प्रभाचन्द्रः तस्मै भोजनमपर्यत् । नमस्कारार्चनापूर्य मुनिभक्तिपरायणः । । ६१||
=
तत्र = उस नगर में, मुनिभक्तिपरायण: मुनि भक्ति में तत्पर चित्त वाला, प्रभाचन्द्रः = प्रभाचन्द्र नामक श्रेष्ठी = सेठ ने, नमस्कारार्चनापूर्व = नमस्कार और पूजन विधि पूर्वक, तस्मै = उन मुनिराज के लिये, भोजनम् = आहार, अर्पयत् = अर्पित किया ।
श्लोकार्थ उस नगर में मुनि भक्ति में प्रवीण एवं उत्साहशील एक प्रभाचन्द्र नामक सेठ रहता था जिसने नमस्कार और पूजनविधि सम्पन्न करके मुनिराज के लिये आहार दिया।