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________________ सप्तमः २१७ अन्वयार्थ – हृदि = मन में, दुःखिता = दुःखी, सा = उस, पतिव्रता = पतिव्रत पालन करने वाली, देवी = रानी ने, अपि = भी, तदनु - राजा का नामकर, काननं = वन में, गत्वा = जाकर, भक्त्या = भक्ति से, पतिशुश्रूषणं = पति की सेवा शुश्रुषा, चकार = की। श्लोकार्थ – अपने मन में दुखी तथा पतिव्रत का पालन करने वाली उस रानी ने भी राजा का अनुसरण करते हुये वन में जाकर पति की सेवा की। एकदारिजयमित्रञ्जयो द्वौ चारणौ मुनी। आयान्तौ वीक्ष्य राजासौ सप्रियश्चाभ्यधावत् ।।७४।। त्रिः परिक्रम्य भक्त्या तौ प्रणनाम शुचादृतः । तं दृष्ट्या तौ सकरुणौ पप्रच्छतुरिमं तदा ।।७५।। स्थीयां व्यवस्था भूपाल कथयस्वास्मदग्रतः । तच्छुत्या तौ मुनी प्राह भूपो याष्पाम्बुलोचनः ।।६।। अन्वयार्थ – एकदा = एक दिन, अरिजयमिऋञ्जयौ = अरिञ्जय और मित्रजय नामक, द्वौ = दो, चारणौ = चारण ऋद्धिधारी, मुनी = मुनिराज, आयान्तौ = आते हुये, वीक्ष्य = देखकर, सप्रिय: = प्रिया सहित, असौ = वह, राजा = राजा. अभ्यधावत् = उन मुनिराज की ओर दौड़ा, च = और. शुचादृतः = निर्मल मन से उत्साहित होते हुये. तौ = उन दोनों मुनिराजों को, भक्त्या = भक्ति से. त्रिःपरिक्रम्य = तीन प्रदक्षिणा करके. प्रणनाम = प्रणाम किया. तदा = तब, तं = उस राजा को, दृष्ट्वा = देखकर, तौ = वे दोनों. सकरूणौ = करुणा युक्त मुनिराजों ने, पप्रच्छतम् = पूछा, मूपाल! = हे राजन, स्वीयां = अपनी, इमां = इस, व्यवस्थां = विशेष अवस्था को. अस्मदग्रतः = हमारे सामने, कथयस्व = कहो, तच्छ्रुत्वा = मुनिराज के ऐसे वचन सुनकर, वाष्पाम्बुलोचनः = अश्रुजलपूरित नेत्रों वाला, भूपः = राजा ने, तौ = उन दोनों, मुनी = मुनिराजों से. प्राह = कहा।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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