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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - परेहिल = दूसरे दिन. (सः = वह मुनिराज), भिक्षार्थम् = भिक्षा
स्वरूप भोजन प्राप्त करने के लिये, सोमवर्माख्यं = सामवर्म नामक, पुरं = नगरं को, गतः = गये (तत्र = वहाँ. उस नगर में), महेन्द्रदत्तभूपालः = महेन्द्रदत्त राजा ने. उत्तम = उत्तम,
आहारं = भोजन, दत्तम् = दिया, आश्चर्यपञ्चकैः - पंचाश्चर्यों के साथ. दीप्तं = दीप्त, (तत् = आहार को), गृहीत्वा = ग्रहण करके, तस्मिन् - राजा में या दाता में, कृतकृत्यता = कृतकृत्यता रूप कृतज्ञता, आरोग्य = आरोपित करके, असौ = वे मुनिराज, भूयः = पुनः, तपोवनं = तपोवन
में, उपागतः = चले गये। श्लोकार्थ – दूसरे दिन वे मुनिराज आहार हेतु सोमवर्म नामक नगर में
गये वहाँ राजा महेन्द्रदत्त ने उन्हें आहार दिया। पंच आश्चर्यों के साथ आहार ग्रहण करके मुनिराज राजा में कृतकृत्यता
आरोपित करके पुनः वन में चले गये। मौनभद्विविधेषूच्चैः तपोदेशेषु चापयत् ।
महोग्रतपसा दीप्ता ग्रीष्मार्क इव स व्यभात् ।।२।। अन्वयार्थ - मौनमृत् = मौन व्रत धारण करने वाले मुनिराज ने विविधेषु
= अनेक प्रकार के, देशेषु = स्थानों में, उच्चैः = उत्कृष्ट, तपः = तप, अतपत - तपा, महोग्रतपसा = अत्यधिक कठिन तपश्चरण से, दीप्तः = दीप्तिमान, सः = वह मुनिराज, ग्रीष्मार्क इव = ग्रीष्मवर्ती सूर्य के समान, व्यभात् = सुशोभित
हुये। श्लोकार्थ - मौन व्रत धारण किये हुये उन मुनिराज अनेक प्रकार के स्थानों
पर उत्कृष्ट तपश्चरण किया और अत्यधिक कठिन उग्र तपश्चरण के कारण ऐसे दीप्तिमान् हो गये मानों ग्रीष्म ऋतु
के सूर्य के समान सुशोभित हो रहे हों। फाल्गुणे कृष्णषष्ठ्याञ्च सन्ध्यायां घाति घातवान्।
शुक्लध्यानाग्निना देवः केपलझानमाप सः।।५३।। अन्वयार्थ – सः = उन, देवः = मुनिराज ने. फाल्गुणे = फाल्गुण मास