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सप्तमः
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कृष्णषष्ठ्यां
कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन, सन्ध्यायां = सन्ध्या काल में, शुक्लध्यानाग्निना = शुक्लध्यान रूप अग्नि से, घाति घाति कर्मों को, घातवान् = घात दिया अर्थात् उनका क्षय कर दिया, च = और, केवलज्ञानम् केवलज्ञान को आप प्राप्त किया ।
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श्लोकार्थ उन मुनिराज ने शुक्लध्यान रूप अग्नि से घाति कर्मों का क्षय फाल्गुण कृष्णा षष्ठी के सन्ध्याकाल में कर दिया और केवलज्ञान पाया।
देवैस्समवसारोऽपि निर्मितो सूर्यस्तत्रेन्दुविजयी
वासवाज्ञया = इन्द्र की आज्ञा से = समवसरण निर्मितः र समवसरण में ज्ञानतेजसा
अन्ययार्थ
अन्वयार्थ
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श्लोकार्थ
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रराज
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वासवाज्ञया । ज्ञानतेजसा । । ५४ ।।
श्लोकार्थ – इन्द्र की आज्ञा से देवों द्वारा समवसरण रचा गया जिसमें भगवान् चन्द्रकान्ति को जीतने वाले सूर्य के समान सुशोभित होने लगे ।
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देवैः देवों द्वारा समवसार: दिया गया तंत्र - उस केवलज्ञान रूप तेज से, (सः = प्रभु), इन्दुविजयी = चन्द्रकान्ति को जीतने वाले, सूर्य इव = सूर्य के समान, रराज = सुशोभित हुये ।
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देवार्चने रताः । । ५५ ।।
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द्वादशस्वप्यत्र कोष्ठेषु सर्वे बभुर्यथासंख्यं स्थिता - अत्र = समवसरण में, द्वादशसु बारहों, कोष्ठेषु = कोठों में, अपि = भी, यथासंख्यं यथाक्रम से स्थिताः = स्थित, देवार्चने = देव की पूजन में रताः = लगे हुये, श्रीमद्गणधरादयः = श्रीमान् गणधर आदि, सर्वे सभी बभुः = सुशोभित हुये ।
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श्रीमद्गणधरादयः ।
समवसरण के बारहों कोठों में भी यथाक्रम से अपना स्थान ग्रहण करने वाले तथा भगवान् पूजा आदि में लगे हुये गणधर आदि सभी लोग सुशोभित हुये ।