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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - तीर्थकर पद्मप्रभ से नौ हजार करोड़ सागर बीत जाने पर,
उनके मध्य की आयु वाले ही सुपार्श्व प्रभु उत्पन्न हुये। लक्षर्विशतिपूर्वोक्तजीवनोयं सतां पतिः ।
शतद्वयधनुष्कायो भूय जगदीश्वरः | ३५।। अन्वयार्थ - सतां = सज्जनों के, पतिः = स्वामी, अयं = यह, जगदीश्वरः
= तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ. लक्षविंशतिपूर्वोक्तजीवनः = बीस लाख पूर्व जीवन वाले, (च = और), शतद्वयधनुष्काय: = दो
सौ धनुष प्रमाण शरीर वाले, बभूव = हुये। श्लोकार्थ – सज्जनों के स्वामी. तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ की आयु बीस
लाख पूर्व थी तथा शरीर दो सौ धनुष प्रमाण ऊँचा था। पञ्चलक्षोक्तपूर्वाश्च बालकेलिविधौगताः । गते कुमारकाले च सजाते यौवनागमे ।।३६।। लब्ध्या स पैतृकं राज्यं ररक्षाखिलमेदिनीम् ।
जितेन्द्रियो जितारातिनिविकारो गुणाम्युधिः ।।४।। अन्वयार्थ - च = और, 'बालकेलिविधौ = बाल क्रीडाओं के करने में,
पञ्चलक्षोक्तपूर्वा: = पाँच लाख पूर्व, गताः = व्यतीत हुये, च = और, कुमारकाले = कुमारकाल, गते = समाप्त होने पर, यौवनागमे = युवावस्था में. सजाते = प्रवेश होने पर पैतृकं = पिता द्वारा प्राप्त, राज्यं = राज्य को, लब्ध्वा = प्राप्त करके, सः - उग, गुणान्बुधिः = गुणों के सागर, जितारातिः = शत्रुओं को जीतने वाले. निर्विकारः = विकार रहित, जितेन्द्रियः = इन्द्रिय विजेता प्रभु सुपार्श्व ने. अखिलमेदिनी = सारी पृथिवी का, ररक्ष = पालन किया
उसकी रक्षा की। श्लोकार्थ – बाल्यावस्था की क्रीड़ाओं में प्रभु की पांच लाख पूर्व आयु बीत
गयी थी। तदनन्तर कुमार काल के बीत जाने पर और यौवनावस्था के आने और उसमें प्रविष्ट हो जाने पर पैतृक राज्य पाकर गुणों के सागर, शत्रुओं को जीतने वाले, विकार