________________
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर शांतिनाथ, तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ, तीर्थङ्कर
अरनाथ और तीर्थकर मल्लिनाथ के कूटों के नाम क्रमशः प्रभासी कूट, ज्ञानधर कूट, नाटककूट और सम्बलकूट बताये गये हैं। मुनिसुव्रतकूटस्य निर्जराख्यः स्मृतो बुधैः ।
सुप्रभासी नमेः कूट: सुभद्रः पार्श्वकप्रभोः ।।१७।। अन्वयार्थ - बुधैः = विद्वज्जनों द्वारा, मुनिसुव्रतकूटस्य = तीर्थङ्कर
मुनिसुव्रतनाथ के कूट का, आख्यः = नाम, निर्जरा = निर्जराकूट, नमः = तीर्थङ्कर नमिनाथ का, कूटः = कूट, सुप्रभासी = सुप्रभासी कूट, पार्श्वकप्रभोः = तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ प्रभु का, (कूटः = कूट), सुभद्रः = सुभद्र कूट, स्मृतः
= स्मरण किया गया है। श्लोकार्थ - विद्वज्जन तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ, तीर्थङ्कर नमिनाथ और
तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के कटों के नाम क्रमशः निर्जरा कूट,
सुप्रभासी कूट और सुभद्रकूट आज भी याद किये जाते हैं। विंशकूटा इमे नित्यं ध्येयाः सम्मेदभूभृतः ।
स्वस्वस्वामिसमायुक्ता ध्यानात्सर्वार्थसिद्धिदाः ||१८|| अन्वयार्थ - सम्मेदभूभृतः = सम्मेदशिखर पर्वत के, स्वस्वस्वामिसमायुक्ता
- अपने-अपने स्वामी तीर्थङ्करों के नाम से संयुक्त, (तथा = एवं), ध्यानात् = ध्यान करने से. सर्वार्थसिद्धिदाः = सभी प्रयोजनों की सिद्धि को देने वाले, इमे = यह, विंशकूटाः = बीस कूट अर्थात् शिखर, नित्यं = हर समय, ध्येयाः = ध्यान
करने योग्य, वर्तन्ते = हैं। श्लोकार्थ - बीसों ही तीर्थङ्करों के अपने-अपने नाम से समलङ्कृत और
ध्यान करने पर सर्वार्थों अर्थात् सभी प्रयोजन भूत पदार्थों की .. सिद्धि को देने वाले ये बीसों ही कूट निरन्तर, हमेशा ध्यान करने योग्य हैं।