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________________ २an श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य जम्बूनाम्नि तदा द्वीपे भरसे चार्यखण्डके। काशीदेशे सुनगरी याराणस्याभिधा स्मृता ।।१६।। अन्वयार्थ । तदा = तब, उस समय. जम्बूनाम्नि = जम्धूनामक, द्वीपे = द्वीप में, भरते = भरतक्षेत्र में, आर्यखण्डके = आर्यखण्ड में, च = और, काशीदेशे = काशी देश में, वाराणसी = बनारस, आभिधा = नाम की, सुनगरी = सुन्दर नगरी. स्मृता = बुधजनों द्वारा याद की गयी थी। श्लोकार्थ – उस समय जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित आर्यखण्ड के काशी देश में वाराणसी नाम की एक सुन्दर नगरी बुधजनों द्वारा याद की जाती थी। स्वविभूत्या हसन्तीव भूमिगापि सुरालयम् । स्मानियाकुमो च गोरकाश्यप उत्तमे ||२०|| सुप्रतिष्ठोऽभवदाजा तेजस्वी भव्यसागरः । तद्राज्ञी पृथिवीषेणा सती सा धर्मशालिनी ।।२१।। अन्वयार्थ – (सा = वह नगरी), भूमिगापि = भूमि पर स्थित होकर भी, स्वविभूत्या = अपनी विभूति से, हसन्ती = हंसती हुई. इव = मानो, सुरालयं - स्वर्ग. (स्यात् = हो), तस्यां = उस नगरी में, इक्ष्वाकुवंशे = इक्ष्वाकु वंश में, च = और, उत्तमे = गोत्रकाश्यपे = काश्यपगोत्र में, तेजस्वी = परा- ..., भत्यसागर: == भव्यसागर, सुप्रतिष्ठः = सुप्रतिष्ठ नामक, राजा = एक राजा, अभवत् = हुआ था, तद्राज्ञी = उसकी रानी, पृथिवीषेणा = पृथिवीषेणा (आसीत् = थी). सा = वह, सती = पतिव्रता, धर्मशालिनी = धर्म पालन में चतुर अर्थ धर्मवृत्ति परायणा. (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ – वह वाराणसी नामक नगरी भूमि पर स्थित हुई भी अपने वैभव के कारण हँसती हुई मानों स्वर्ग ही थी। उसमें इक्ष्वाकुवंश में और काश्यपगोत्र में, एक भव्य व पराक्रमी राजा सुप्रतिष्ठ हुआ था। उसकी एक धर्मपरायणा एवं पतिव्रता रानी पृथिवीषेणा थी।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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