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________________ सप्तमः १६६ सप्तविंशतिसहस्रवर्षोपरि स मानसम् । आहारमग्रहीत्तद्वत् सप्तविंशतिपक्षकैः ।।१६ ।। गतैर्निश्वासिकोच्छ्यासः तस्माच्च नरकायधिः । स्वेच्छाप्रमाणक्रोधादि किञ्चिन्न कुरुते सः ।।१७।। अन्ययार्थ - सः = वह देव, सप्तविंशतिसहस्रवर्षोपरि = सत्ताइस हजार वर्ष बीतने पर, मानसं- मानस, आहारं = आहार को, अग्रहीत् = ग्रहण करता था, तद्वत् = वैसे ही, सप्तविंशतिपक्षकैः गतैः = सत्ताइस पक्षों के चले जाने से, निश्वासिकोच्छवासः = श्वासोच्छवास लेने वाला, च = और तस्मात् = वहाँ से अर्थात् सुभद्र विमान से. नरकावधि = नरक पर्यन्त अवधिज्ञान वाला, (अमूत् = हुआ), सः = वह, स्वेच्छाप्रमाणक्रोधादि = स्वयं की इच्छा रूप प्रमाण से. क्रोधादि को, किञ्चित् = कुछ भी, न = नहीं, कुरुते स्म = करता था। श्लोकार्थ – वह देव सत्ताइस हजार वर्ष बीत जाने पर एक बार कण्ठ निसृत मानसाहार स्वरूप अमृत को ग्रहण करता था तथा सत्ताईस पक्ष बीत जाने पर एक बार श्वासोच्छवास लेता था। नरक पर्यन्त अवधिज्ञान वाला हुआ। अपनी इच्छा के प्रमाण से ही वह क्रोधादि कषायें कुछ भी नहीं करता था। ध्यायन् सिद्धान् सदा सिद्धविम्यान् संपूजयन्नमन्। षण्मासकावशिष्टायुमहासुखभुगप्यभूत्।।१८।। अन्वयार्थ - सदा = हमेशा. सिद्धान् = सिद्ध भगवन्तों का, ध्यायन = ध्यान करता हुआ, सिद्धबिम्बान् = सिद्धबिम्बों को. संपूजयन = पूजा करता हुआ, च = और, नमन = नमस्कार करता हआ, षण्मासकावशिष्टायुः = छह माह की शेष आयु वाला. (सः = वह देव), अपि = भी, महासुखभुक् = महान् सुख का अनुभव करने वाला, अभूत् = हो गया। श्लोकार्थ – सदा ही सिद्धभगवन्तों का ध्यान करता हुआ, सिद्ध बिम्बों की पूजा करता हुआ उन्हें प्रणाम करता हुआ मात्र छह माह की शेष आयु वाला होकर भी वह देव महा सुख को भोगने वाला हुआ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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