________________
सप्तमः
श्लोकार्थ सुप्रसिद्ध पूर्व धातकी खण्ड नामक द्वीप में शुभकारिणी और आनन्ददायिनी सीता नदी है। उस नदी के उत्तर भाग में धर्मात्माओं से पूर्ण कच्छदेश है ।
अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
अन्वयार्थ
श्लोकार्थ
-
तत्रा क्षेमपुरं भास्वत्तस्य राजा सुपुण्यकृत् । भूप शीर्षार्चितपदद्वयः । । ४ । ।
नन्दिषेणोऽभवद्
तंत्र = उस कच्छ देश में, भास्वत् = चमक-दमक से पूर्ण, क्षेमपुरं = क्षेमपुर नामक नगर ( आसीत् = था) तस्य = उस नगर का राजा - राजा सुपुण्यकृत् = उत्तम पुण्य कार्यों को करने वाला, भूपशीर्षार्चितपदद्वयः = जिसके दोनों पैर राजाओं के सिरों से पूजित थे ऐसा नृपतिवंदितचरण, नन्दिषेणः नन्दिषेण अभवत् = था।
—
—
१६५
के उत्तर भाग = माग में धार्मिकः = धर्मात्माओं से युक्त, कच्छदेशः = कच्छदेश (अस्ति = है ) ।
—
—
उस कच्छ देश में चमक-दमक युक्त क्षेमपुर नामक नगर था जिसका राजा नन्दिषेण था वह उत्तम पुण्य कार्यों को करने वाला और राजाओं के मस्तकों से पूजित है दोनों चरण जिसके, ऐसा पूजनीय था ।
नन्दिषेणा तस्य राज्ञी तया सह मुमोद सः ।
महाप्रतापदहनज्वालादग्धारिभूरुहः ।।५।।
तस्य उस राजा की, राज्ञी रानी, नन्दिषेणा नन्दिषेणा ( आसीत् = थी ), सः = वह, महाप्रतापदहनज्वालादग्धारिभूरुहः महान् प्रताप रूप अग्नि की ज्वालाओं से दग्ध कर दिये हैं शत्रु रूपी वृक्ष जिसने ऐसा राजा, तया रानी के सह = = साथ, मुमोद = प्रसन्न हुआ |
=
उस राजा की रानी नन्दिषेणा थी। जिसके साथ वह शत्रु रूपी वृक्षों को अपनी प्रतापवहिन से दग्ध करने वाला राजा प्रसन्नता पूर्वक रहता था ।
पुत्रानिय प्रजाः स्वीया ररक्ष परोपकारी सम्यक्त्वसंयुतः
सततं नृपः । परमोदयः ।।६।।