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________________ अथ सप्तमोऽध्याय: श्रीमत्प्रभासकूटे यो निःश्रेयसपदं गतः । तस्मै सुपार्श्वनाथाय देवदत्तनमस्कृतिः।।१।। अन्वयार्थ – यः = जिन्होंनें, श्रीमत्प्रभासकूटे = शोभा सम्पन्न प्रभासकूट पर, निःश्रेयसपदं = मोक्षपद को. गतः = प्राप्त किया, तस्मै = उन, सुपार्श्वनाथाय = सुपार्श्वनाथ भगवान के लिये. देवदत्तनमस्कृतिः = देवदत्त का नमस्कार. (अस्ति -. है)। श्लोकार्थ – जिन्होंने श्री शोभा से सम्पन्न प्रभास कूट पर मोक्षपद पाया ___ उन सुपार्श्वनाथ के लिये मुझ देवदत्त कवि का नमस्कार है। तत्प्रसादात्कथां तस्य चतुर्वर्गफलप्रदाम्। सङ्ग्रहेण प्रवक्ष्येहं भव्याः शृणुत सादरम् ।।२।। अन्वयार्थ – तत्प्रसादात् = तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ के प्रसाद से, अहं - मैं, सङ्ग्रहेण = संग्रह की अपेक्षा से, तस्य = उन सुपार्श्वनाथ की, चतुर्वर्गफलप्रदां = धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष रूप फल को देने वाली, कथां = कथा को, प्रवक्ष्ये - कहूंगा, भव्याः -- हे भव्य जीवो!, सादरं = आदर सहित तां = उसको), शृणुत = सुनो। श्लोकार्थ - तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के प्रसाद से मैं संग्रह की अपेक्षा उन तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष स्वरूप फल को देने वाली कथा को कहूंगा । उस कथा को हे भव्य जीवो! तुम सब आदर सहित सुनो। प्रसिद्ध धातकीखण्डे पूर्वस्मिन् हलादिनी शुभा । सीता तदुत्तरे • भागे कच्छदेशश्च धार्मिकः ।।३।। अन्वयार्थ - प्रसिद्धे = सुप्रसिद्ध, पूर्वस्मिन् = पूर्व, धातकीखण्डे = धातकी खण्ड में, शुभा = शुभंकर, हलादिनी = आनंददायिनी, सीता = सीता नदी, (अस्ति = है), च = और, तदुत्तरे = उस नदी
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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