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________________ १६ ............... -..-....-..- .- . श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य फाल्गुने मासि कृष्णायां चतुर्थ्यां मुनिभिः सह । सहस्रैः प्रतिमायोगमादायापामृतं प्रभुः ||६६।। सन्ध्यायां मुक्तिकल्याणमस्यापि सिद्धधामनि । अखण्डानन्दपीयूषरसास्थादी बभूय सः ।।६७ ।। अन्वयार्थ - फाल्गुने = फाल्गुन, मासि = माह में, कृष्णायां = कृष्णपक्ष में, चतुर्थ्या = चतुर्थी तिथि में. सहस्रैः = हजारों, मुनिभिः = मुनियों के, सह = साथ. प्रभुः = भगवान् ने, प्रतिमायोगं = प्रतिमायोग को, आदाय = लेकर, अमृतं = मरण रहित मोक्ष को, आप = प्राप्त कर लिया, सन्ध्यायां = सायं बेला में, अस्य = इन भगवान का, मुक्तिकल्याणम् = मोक्ष कल्याणक, अपि = मी, बभूव = हुआ, सः = वह, सिद्भधामनि = सिद्धस्थान में, अखण्डानन्दपीयूषरसास्वादी = अखण्ड आनंद स्वरूप अमृत रस का अनुभव करने वाला या वेदन करने वाला, बभूव = हुआ । श्लोकार्थ – फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी के दिन हजारों मुनियों के साथ भगवान् ने प्रतिमायोग लेकर मोक्ष पद पा लिया। उनका मोक्षकल्याण संध्या काल में हुआ। वह भगवान् सिद्ध स्थान में खण्डरहित अर्थात् सतत् परिपूर्ण आनन्द रूप अमृत के रसपान का स्वाद लने वाले हो गये। एकोनशतकोट्युक्ताः समुद्राशीतिलक्षकाः । नेत्रचत्वारिंशत्सहस्रास्तथा सप्तशतप्रमाः ।।६८।। सप्तविंशतिसंख्यातास्तत्पश्चात्मोहनाभिधात्। कूटात्सिद्धपदं प्राप्ता मुनयो दिव्यचक्षुषः ।।६६ ।। अन्वयार्थ – तत्पश्चात् -- पदप्रभु के मोक्ष जाने के बाद. एकोनशतकोट्युक्ताः = निन्यानवें करोड, समुद्राशीतिलक्षकाः = चौरासी लाख, नेत्रचत्वारिंशत्सहस्राः = बयालीस हजार, सप्तशतप्रमा: - सात सौ, तथा = और, सप्तविंशतिसंख्याताः = सत्ताइस संख्याप्रमाण, दिव्यचक्षुषः = दिव्यज्ञान वाले, मुनयः = मुनियों ने, मोहनाभिधानात् = मोहन नामक, कूटात् = कूट से. सिद्धपदं = सिद्धपद को, प्राप्ता = प्राप्त किया।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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