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________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य कूट), दत्तधवलः = दत्तधवल नामक कूट, (अस्ति = है), (इति == ऐसा). बुधाः = विद्वज्जन, विदुः = जानते हैं। श्लोकार्थ - तीर्थकर अजितनाथ प्रभु का जो कूट सिद्धि स्थान है उसे सिद्धवर कूट कहा जाता है तथा इसी प्रकार तीर्थङ्कर संभवनाथ के सिद्धत्वगमन स्थल स्वरूप कूट को दत्तधवल कहा जाता है। अभिनन्दनकूटो यः स आनन्द इतीरितः। सुमतीशस्याविचलः सदाचलरमालयः ।।१२।। अन्वयार्थ - यः अभिनन्दनकूटः = जो तीर्थङ्कर अभिनन्दन का कूट. (अस्ति = है), सः = वह, आनन्दः = आनन्द नामक कूट, (च = और), सुमतीशस्य = सुमतिनाथ तीर्थङ्कर का, (कूटः = कूट), सदाचलरमालयः = नित्य निश्चल केवलज्ञान लक्ष्मी के गृह स्वरूप, अविचलः = अविचल नामक कट, (अस्ति = है), इति = ऐसा, ईरित: - माराया गया है। श्लोकार्थ - तीर्थङ्कर अभिनन्दननाथ के कूट का नाम आनन्दकूट और तीर्थकर सुमतिनाथ के कूट का नाम नित्य निश्चल केवलज्ञान लक्ष्मी के घर स्वरूप अविचल कूट कहा गया है। पद्मप्रभाभिधानस्य मोहनो नाम कीर्त्यते । सुपार्श्वनाथस्य तथा प्रभाकूटः समिष्यते ।।१३।। अन्ययार्थ - पद्मप्रभामिधानस्य = पदमप्रभ नामक तीर्थङ्कर के. (कूटस्य = कूट का) नाम = नाम, मोहनः = मोहन कूट, कीर्त्यते = नामोच्चरित किया जाता है, तथा = और, सुपार्श्वनाथस्य = तीर्थङ्कर सुपार्श्वनाथ का, (कूट: = कूट), प्रभाकूट: = प्रभाकूट, समिष्यते = चाहा-बताया गया है। श्लोकार्थ - पद्मप्रभ नामक छठवें तीर्थङ्कर के कूट को मोहन कूट और सुपार्श्वनाथ तीर्थकर के कूट को प्रभाकूट कहा गया है। चन्द्रप्रभस्य ललितधननामा सः यर्णितः । सुप्रभः पुष्पदन्तस्य वैधुतः । शीतलस्य च ।।१४।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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