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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य के रत्न वर्षा दिये जिस प्रकार वर्षा ऋतु के बादल पानी
बरसाते हैं। माघे कृष्णदले षष्ठ्यां चित्रायां शुभवासरे । रत्नपर्यङ्कसुप्ता सा सुसीमा भूपतेः प्रिया ||२८|| रात्रौ प्रत्युषसि स्वप्नान् षोडशैक्षत भाग्यतः ।
स्वप्नान्ते सिन्धुरं वक्त्रे प्रविष्टं समलोकयत् ।।२६ ।। अन्वयार्थ - माघे = माघ मास में, कृष्णदले = कृष्ण पक्ष में, षष्ट्यां =
षष्ठी, शुभवासरे = शुभ दिन में, चित्रायां = चित्रा नक्षत्र में, रत्नपर्यङ्कसुप्ता - रत्नों से निर्मित पलङ्ग पर सोयी हुयी, भूपः - राजा की, मा - नाप, सुसीम्ग = सुसीमा नामक, प्रिया = प्रिय रानी ने, रात्रौ = रात्रि में, प्रत्युषसि = प्रभातबेला में, भाग्यतः = माग्य से. षोड़श = सोलह, स्वप्नान् = स्वप्नों को, ऐक्षत = देखा, स्वप्नान्ते = स्वप्न देखने के अन्त में, वक्त्रे = मुख में, प्रविष्टं = प्रविष्ट होते हुये. सिन्धुरं = हाथी को.
समलोकयत् = देखा। श्लोकार्थ - माघ कृष्णा षष्ठी के शुभ दिन चित्रा नक्षत्र में रत्न खचित
पलंग पर सोयी हुई राजा की सुसीमा नामक उस प्रिय रानी ने रात्रि बीतने की प्रभात वेला में भाग्यवशात् सोलह स्वप्नों को देखा तथा स्वप्नदर्शन के अन्त में अपने मुख में प्रविष्ट
होते हुये एक हाथी को भी देखा। अथ प्रबुद्धा सा देवी तत्क्षणं पत्युरन्तिके । गता प्रसन्नवदना तेनागच्छेति सादरम् ।।३०।। उक्तोपविष्टा सत्पीठे बद्धाञ्जलिरूवाच तम् ।
स्वामिन्मयोषसि स्वप्नाः षोडशाध समीक्षिताः ।।३१।। अन्वयार्थ – अथ = उसके बाद, प्रबुद्धा = जागी हुई, सा = वह, देवी
= रानी, प्रसन्नवदना = प्रसन्न मुख वाली होकर, तत्क्षणं = जल्दी ही. पत्युरन्तिके = पति के पास में, गता = गयीं, तेन = राजा द्वारा, आगच्छ = आओ. इति = ऐसा. सादरं = आदर सहित, उक्ता = कही गयी, सत्पीठे - उत्तम आसन पर,