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________________ बष्ठः o तस्य राज्ञी सुसीमाख्या महाभाग्येन संयुता । अहमिन्द्रप्रसूर्या च भवित्री समशोभत ||२५|| अन्वयार्थ – या = जो, अहमिन्द्रप्रसूः = अहमिन्द्र को उत्पन्न करने वाली. भवित्री = होगी, च = और, महाभाग्येन = महाभाग्य से, संयुता = सहित, सुसीमाख्या = सुसीमा नाम वाली, तस्य = उस राजा की, राज्ञी = रानी, समशोभत = सुशोभित होती थी। श्लोकार्थ - जो अहमिन्द्र को जन्म देने वाली होगी और महा भाग्यशालिनी है ऐसी सुसीमा नाम की उस राजा की रानी सुशोभित होती थी। तत्तुष्ट्यै स्वावधिज्ञानादागर्म परमेशितुः । ज्ञात्वा तत्रैव धनदं रत्नदृष्ट्यर्थमिन्द्रकः ।२६।। समादिशत् समादिष्टस्तेन यक्षेश्यरस्तदा। वर्षाभ्रवद्ववर्षाशु रत्नानि विविधानि सः ।।७।। अन्ययार्थ – स्वावधिज्ञानात् = अपने अवधिज्ञान से, परमेशितुः = परमेश्वर या तीर्थकर का, आगमं = आना जन्म लेना, ज्ञात्वा = जानकर, तत्तुष्ट्य = उस नगर के निवासी और राजा रानी की संतुष्टि के लिये, इन्द्रक: = इन्द्र ने, तत्रैव = उस सारे नगर में ही, रत्नदृष्ट्रियर्थम् = रत्नों की दृष्टि करने के लिये, धनदं = कुबेर को, समादिशत् = आदेश दिया, तेन = कुबेर द्वारा, यक्षेश्वरः = यक्षों के अधिपति ने, समादिष्टः = आदेश प्राप्त किया, तदा = तब अर्थात् उसके बाद. सः = उस यक्षेश्वर ने, वर्षाभ्रवत् = वर्षा ऋतु के बादलों के समान, विविधानि = अनेक प्रकार के, रत्नानि = रत्नों को, आशु = शीघ्र ही, ववर्ष = वर्षा दिया। श्लोकार्थ – अपने अवधिज्ञान से पद्मप्रभु तीर्थङ्कर के आगमन को जानकर इन्द्र ने उस नगर के निवासियों और राजा-रानी की संतुष्टि के लिये उस नगर में रत्नों की वर्षा करने के लिये कुबेर को आदेश दिया। कुबेर ने यक्षों के स्वामी को आदेश दिया तब उस यक्षपति ने उस प्रकार से अनेक प्रकार
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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