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मञ्चमः
पक्ष अन्वयार्थ - यः - जो, अचलकूट = अविचलकूट की, वन्दते = वन्दना
करता है, सः = वह कोटिप्रोषधसत्फलम् = एक करोड़ प्रोषधोपवास के सत्फल को, प्राप्नुयात् = प्राप्त करे, अत्र = यहाँ सम्मेदशिखर पर. अशेषाणां = सम्पूर्ण कूटों की, बन्दकेन = वन्दना करने वाले के. समः = समान, कः = कौन,
(भवितुमर्हति = हो सकता है)। श्लोकार्थ – कवि कहता है कि जो इस अविचलकूट की वन्दना करता
है वह एक करोड़ प्रोषधोपवास से प्राप्त होने योग्य सत्फल को प्राप्त करता है फिर सम्मेदशिखर पर विद्यमान सभी कूटों की वन्दना करने वाले के समान कौन होगा। अर्थात् उसके फल को कैसे बतायें। जम्बूस्थे भरतक्षेत्रे योधदेशे मनोहरे ।
घकास्ति पद्मनगरं भूप आनन्दसेनकः ।।६६ ।। अन्वयार्थ .. जम्बूस्थे - जम्बूद्वीप में स्थित, भरतक्षेत्रे = भरतक्षेत्र में,
मनोहरे = सुन्दर, योधदेशे = योध नामक देश में, पद्मनगरं :: पदम नामक नगर, चकास्ति = सुशोभित था। (तत्र = उसमें) भूपः = राजा, आनन्दसेनकः = आनन्दसेन, (आसीत्
= था)। श्लोकार्थ . . जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित सुन्दर योध देशवर्ती पदमपुर
नामक नगर शोभायमान था जिसका राजा आनन्दसेन था। अभूत्तस्य प्रिया नाम्ना प्रसिद्धा या प्रभावती ।
शुभसेनो मित्रसेनस्तस्य पुत्रौ बभूवतुः ।।६७।। अन्वयार्थ – तस्य = उस राजा आनंदसेन की, या = जो, प्रसिद्धा =
विख्यात, प्रिया = प्रियपत्नी, (आसीत् = थी), (सा = वह), नाम्ना = नाम से, प्रभावती = प्रभावती. अभूत् = थी, (ततः = उससे). तस्य = उस राजा के, शुभसेनः = शुभसेन, (च = और), मित्रसेनः = मित्रसेन, पुत्रौ = दो पुत्र, बभूवतुः =
उत्पन्न हुये। श्लोकार्थ - राजा आनंदसेन की प्रिय पत्नी प्रभावती से शुभसेन और
मित्रसेन नामक दो पुत्र हुये।