SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य मुनियों द्वारा सा = साथ-साथ, निर्घोषः = जयध्वनि की घोषणा किये जाते हुये, शिवम् – मोक्ष को, अगमत् = चले गये। श्लोकार्थ .- संसार में अंतिम पर्याय की आयु एक माह शेष रहने पर वह प्रभु सुमतिनाथ सम्मेदशिखर' को प्राप्त कर वहाँ अविचलकूट पर स्थित हुये। शुक्लध्यान से समुत्पन्न सुधा स्वरूप अनंतसुख का आस्वादन करते हुये अक्षीण देवत्व को उजागर करते हुये तथा हजारों मुनिराजों द्वारा साथ-साथ जय निर्घोष से सम्बोधित किये जाते हुये उन्होंने मोक्ष पद प्राप्त कर लिया। एकार्बुद चतुरशीतिकोटितदनन्तरम् । द्विसप्तलक्षं चैकाशीति सप्तशतमुत्तमाः ।।६३ ।। तस्मादविचलात्कूटात्सिद्धिं प्राप्ता मुनीश्वराः । संसारे दुर्लभां भव्यजीवैः प्राप्यां तपोबलात् ।।६४।। अन्वयार्थ – तदनन्तरम् = उनके मोक्ष जाने के बाद, तस्मात् = उस, अविचलात् = अविचल नामक, कूटात् = कूट अर्थात् टोंक से. एकार्बुदं = एक अरब, चतुरशीतिकोटि = चौरासी करोड़, द्विसप्तलक्षं = चौदह लाख, सप्तशतम् = सात सौ, एकाशीति = इक्याशी, उत्तमाः = उत्तम शुक्ल ध्यान से युक्त होते हुये, मुनीश्वराः = मुनीवरों ने, संसारे = संसार में, भव्यजीवैः = भव्यजीवों द्वारा, तपोबलात् = तपश्चरण के बल से, दुर्लभां -- दुर्लभता से, प्राप्यां = प्राप्त होने वाली, सिद्धिं = सिद्धदशा को, प्राप्ताः = प्राप्त कर लिया। __ श्लोकार्थ – सुमतिनाथ भगवान् के मोक्ष चले जाने के बाद उसी अविचल कूट से एक अरब चौरासी करोड़ चौदह लाख सात सौ इक्याशी उत्तमपद को प्राप्त मुनिराजों ने उस सिद्धपद को प्राप्त कर लिया जो संसार में भव्यजीवों द्वारा तपश्चरण करके दुर्लभता से प्राप्त करने योग्य होता है। वन्दते चलकूटं यः कोटिप्रोषधसत्फलम् । स प्राप्नुयादशेषाणां यन्दकेन समो त्रकः ।।५।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy