________________
पञ्चमः
વપૂર્ણ
यथोक्तगणपाद्यैः = जैसा कहे गये हैं वैसे गणधर आदि, 'मव्यैः = भव्य जीवों के द्वारा, सम्यक = सच्ची, भक्त्या = भक्ति से, समाराध्यः = परिपूर्ण आराध्य हुये, सः -- वह सुमतिनाथ भगवान. युवार्क: इव = तरुण सूर्य के समान, व्यमात् =
सुशोभित हुये। श्लोकार्थ – समवसरण के बारह कोठों में बैठे हुये गणधरादि सभी भव्य
जीवों द्वारा अपनी सच्ची भक्ति से आराध्य बनाये गये भगवान
सुमतिनाथ तरुण सूर्य के समान सुशोभित हुये। किरन्दिव्यध्वनि देय: पुण्यान्युपदिशन्सताम् |
पुण्यक्षेत्रेषु सर्वेषु विजहार यदृच्छया ||६०।। अन्वयार्थ – (तथा च = और), (स = उन), देवः = भगवान् सुमतिनाथ
ने. दिव्यध्वनि - दिव्यध्वनि को, किरन् = खिराते हुये. (च = और ), सतां = सज्जनों के लिये, पुण्यानि = पवित्र वचनों का, उपदिशन् = उपदेश देते हुये. सर्वेषु = सभी, पुण्यक्षेत्रेषु = पुण्यशाली जीवों के देशों-निवासनगरों में, यदृच्छया =
स्वतंत्रपने, विजहार = विहार किया। श्लोकार्थ – समवसरण में सुशोभित उन भगवान् सुमतिनाथ ने दिव्यध्वनि
खिराते हुये अर्थात् सत्पुरुषों को पवित्र धर्मनिष्ठ वचनों का उपदेश देते हुये सभी पुण्यात्मा जीवों के निवास स्वरूप
पुण्य क्षेत्रों में विहार किया। मासावशिष्टायुषि संप्राप्य सम्मेदपर्वतम् । चतुर्थ्यां फाल्गुणे कृष्णदले विधलकूटगः ।।६१।। शुक्लध्यानसुधास्वादाक्षयदेवत्वमागतः।
निर्घोषो मुनिभिः सार्ध सहरगमच्छिवम् ।।२।। अन्वयार्थ - मासावशिष्टायुषि = एक माह आयु शेष रहने पर, (सः =बह
सुमतिनाथ केवली), सम्मेदपर्वतं = सम्मेदशिखर को, संप्राप्य = प्राप्त कर, (तत्र = वहाँ), अविचलकूटग; = अविचलकूट पर स्थित. शुक्लध्यानसुधास्वादाक्षयदेवत्वमागत: = शुक्ल ध्यान से उत्पन्न अनंत सुख रूप सुधा के आस्वाद से अक्षीणदेवपने को प्राप्त हुये, सहस्रैः = हजारों, मुनिभिः =