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________________ _ १५१ पञ्चमः श्लोकार्थ – तीर्थङ्कर अभिनन्दन नाथ के पश्चात् एक करोड़ नौ लाख सागर काल बीत जाने पर तीर्थङ्कर सुमतिनाथ हुये । उनकी आयु चालीस लाख पूर्व श्री तथा शरीर की ऊँचाई तीन सौ धनुष प्रमाण कही गई है। स्वर्णकान्तिः कोमलाङ्गः पुण्यप्रकृतिरीश्वरः । संदीव्यन् समचतुः स्यामसोभासे घुरजूत्तमः ||४२।। स वजर्षभनाराघशरीरो बालचन्द्रवत् । बालक्रीडाविलासैश्च ववृधे भूपसद्मनि ।।४३।। अन्वयार्थ – च = और, भूपसदमनि : राजा के सदन में, सः = वह. स्वर्णकान्तिः = स्वर्णकान्ति युक्त गौरवर्ण, कोमलाङ्गः = कोमल शरीर वाला. पुण्यप्रकृतिः = पुण्य प्रकृतियों के उदय वाला, संदीव्यन = कान्ति से प्रकाशित होता हुआ, समचतुःस्थानशोभासिन्धुः :. समचतुर संस्थान के कारण अतिशय शोभायमान, अनूत्तमः = अत्यधिक उत्तम, वर्षभनाराचशरीरः = वजवृषभनाराच संहनन युक्त शरीर वाला, ईश्वरः = प्रशु सुमतिनाथ, बालक्रीडाविलासैः = 'बालोचित क्रीड़ाओं के हाव भावों से, बालचन्द्रवत् = बाल चन्द्रमा के समान, ववृधे = वृद्धिंगत हुये। श्लोकार्थ – और राजा के महल में वे सुमतिनाथ भगवान् अपनी बाल्योचित क्रीड़ाओं व हाव-भावों से बाल चन्द्रमा के समान निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हुये । वह सोने की आभा जैसे गौरवर्ण वाले, पुण्य प्रकृतियों के उदय वाले, कोमल सुकुमार देह वाले, समचतुरससंस्थान के कारण शोभा के सागर स्वरूप, अतिशय श्रेष्ठ अर्थात् सर्वोतम और वजवृषभनाराचसंहनन के कारण मजबूत शरीरधारी थे। उनका शरीर अपनी कान्ति से चमकता रहता था। श्यामकेशः समुद्दिव्यच्छीर्षः पङ्करूहाननः । ललितोन्नतभालस्थभाग्योल्लसित वैभवः ।।४४।। त्रिज्ञानसूचको भास्वत्कुण्डलार्चितकर्णकः । कामचापभृकुटिको नीलोत्पलविलोचनः ।।४५ ।।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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