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________________ १५० श्री सम्मेदशिखर माहार तस्य कृत्वा सुमत्याख्यं देवैर्देवं नियेच सः । कृतोत्सवः सुरैः सार्धं प्राप देवालयं ततः ||३६ || अन्वयार्थ -- सः = उस इन्द्र ने, वस्त्राभरणैः = वस्त्र और आभूषणों से, देवं = भगवान् को, सम्भूष्य = अच्छी तरह से विभूषित करके, अयोध्यायां = अयोध्या नगरी में, भूपमवने = राजा के महल में, वेदितः = सिंहासन देदी से, अग्रे = आगे, अथ = और, तस्य = उनका, सुमतिः = सुमतिनाथ, आख्यं = नाम को. कृत्वा = करके. देवं = प्रभु को, निवेद्य = निवेदन करके, देवैः = देवताओं के साथ, कृतोत्सवः = किया है उत्सव जिसने ऐसे उस इन्द्र ने, सुरैः सार्धं = देवताओं के साथ, नक - अयोध्या से, देवालयं = देवालय अर्थात् स्वर्ग को, प्राप = प्राप्त किया। श्लोकार्थ – इन्द्र ने वस्त्राभूषणों से देव को अर्थात् तीर्थकर शिशु को विभूषित करके उन्हें अयोध्या में राजभवन की वेदी से अग्रभाग में स्थापित किया तथा उनका "सुमतिनाथ' नामकरण करके उन्हें तथा उनके पिता को निवेदन करके देवताओं के साथ उत्सव करने वाला वह इन्द्र देवताओं के साथ ही अयोध्या से स्वर्ग में चला गया। नयलक्षोत्तरकोट्युक्तसागरेष्वभिनन्दनात्। गतेषु सुमतिश्चासीत् तन्मध्यायुमहाप्रभुः ।।४०।। चत्वारिंशत्पूर्यलक्षजीयी त्रिशतधनुःप्रमः । शरीरोत्सेध आख्यासः तस्य देवस्य चागमे ।।४१।। अन्वयार्थ – अभिनन्दनात = अभिनंदननाथ से, नवलक्षोत्तरकोट्युक्तसागरेषु = एक करोड़ नौ लाख सागर, गतेषु = बीत जाने पर, तन्मध्यायुर्महाप्रभुः = उनसे मध्यम आयु वाले महाप्रभु तीर्थङ्कर, चत्वारिंशत्पूर्वलक्षजीवी = चालीस लाख पूर्व प्रमाण जीवन वाले, सुमतिः = तीर्थङ्कर सुमतिनाथ, आसीत् = हुये थे, च = और, तस्य = उन, देवस्य = भगवान् के, शरीरोत्सेधः = शरीर की ऊँचाई, त्रिशतधनुःप्रमः = तीन सौ धनुष प्रमाण, आगमे = आगम में, आख्यातः = कही गई है।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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