SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४७ पञ्चमः श्लोकार्थ – उस अयोध्या नगरी में राजा मेघरथ और उसकी प्रिय पत्नी, मङगला थी। उस मङगला रानी के साथ वह धर्मात्मा राजा लौकिक सुख को भोगा करता था। इन्द्रःस्थावधितः श्रीमदहमिन्द्रागमनं हृदि । बुद्ध्वा तद्भपभवने नगरेऽपि तथैव च ।।२६।। रत्नवृष्ट्यादिमादिशत् धनदस्तन्निदेशतः । ववर्ष वविधान्याशु रत्नानि क्षितिपालके ||३०|| अन्वयार्थ – इन्द्रः = इन्द्र ने, स्वावधितः = अपने अवधि ज्ञान से, श्रीमदहमिन्द्रागमनं = श्रीसम्पन्न अहमिन्द्र का पृथ्वी पर आगमन, हृदि = मन में, बुद्ध्वा = जानकर, तद्भपभवने = उस राजा के भवन में, तथा च = और, नगरे = नगर में, अपि = भी, रत्नवृष्ट्यादिकम् = रत्नवृष्टि आदि करने का, आदिशत् = आदेश दिया। वान्लश: - इन्द्र के आदेश से, धनदः = कुबेर ने, आशु = शीघ. एव = ही. क्षितिपालके = राजा के भवन और नगर में. विविधानि = अनेक प्रकार के, रत्नानि = रत्नों को, ववर्ष = बरसाया । श्लोकार्थ – इन्द्र ने अवधिज्ञान से अपने मन में, श्रीसम्पन्न अहमिन्द्र का आगमन पृथ्वी पर होगा यह जानकर कुबेर को राजा के घर में और नगर में रत्नवृष्टि करने को कहा। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने राजा के घर में व नगर में अनेक प्रकार के रत्नों की वर्षा की। एकदा श्रायणे मासे द्वितीयायां सिते दले । मघायां च निशान्ते सा मङ्गला तत्र निद्रिता ।।३१।। अनन्यसुलभान् स्वप्नान् षोडशैक्षत भाग्यतः । स्वप्नस्यान्ते च मातङ्गः प्रविवेश तदाननम् ।।३२।। अन्वयार्थ – एकदा = एक दिन, श्रावणे = श्रावण, मासे = मास में, सिते = शुक्ल, दले = पक्षे, द्वितीयायां = द्वितीया के दिन, निशान्त = रात्रि के अन्तिम प्रहर में, मघायां च = और मघा नक्षत्र में, तंत्र = उस भवन में, मङ्गला = मङ्गला रानी, निद्रिता = सो रही (आसीत् = थी), सा - उस रानी ने, अनन्यसुलभान्
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy