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श्री सम्मेदशिखर माहात्म विजयसेन नामक, राजा = राजा, अभूत = हुआ था, तेन = उसके द्वारा, चक्रवर्तिना = चक्रवर्ती के, सह = साथ, वै = आवश्यक रूप से, सम्मेदयात्रा - सम्मेदशिखर की यात्रा.
कता = की गयी। श्लोकार्थ – राजा विभवसेन के वंश में एक विजयसेन नामक राजा हुआ ।
जिसने चक्रवर्ती के साथ अवश्य की जाने योग्य सम्मेदशिखर
पर्वत की तीर्थयात्रा की थी। आनन्दकूटमहिमा च कथितास्ति बहुविस्तरात् । सङ्घभक्तिः कृतानेन बहुधा धर्मधारिणा ।।७३।। अन्ययार्थ .. अनेन = इस. धर्मधारिणा = धर्मधारी अर्थात् धर्मात्मा कवि
द्वारा. बहुधा = बहुत प्रकार से, संघभक्तिः = संघों की भक्ति, कता = की गई, च = और, बहुविस्तरात् = बहुत विस्तार से, आनन्दकरमहिमा - आनन्द नामक कट की महिमा, (अपि
- भी). कथिता = कही गई है। श्लोकार्थ -- इस धर्मात्मा कवि द्वारा बहुत प्रकार से मुनि,आर्यिका आदि
संघों की भक्ति की गई है तथा सम्मेदशिखर के आनन्दकूट
की महिमा भी बहुत विस्तार से कही गयी है। सम्मेदानन्दकूटस्य दर्शनाद् भव्यमानवः । फलं लक्षोपवासानां षोडशेति वरं लभेत् । १७४ ।। अन्वयार्थ – भव्यमानध -- भव्य मनुष्य, सम्मेदानन्दकूटस्य - सम्मेदशिखर
की आनंदकूट के, दर्शनात् = दर्शन से, षोडश = सोलह लक्षोपवासानां = लाख उपवासों का, वरं = श्रेष्ठ, फलं =
फल को. लभेत् = पाता है, इति = ऐसी, (श्रुतिः = श्रुति है)। श्लोकार्थ . भव्य मनुष्य सम्मेदाचल पर्वत की आनन्दकूट का दर्शन करने
से सोलह लाख उपवासों का श्रेष्ठ फल पाता है, ऐसी श्रुति
तैरश्ची नारकी चैय न गतिं प्राप्नुयात्क्वचित् । ईदृग्विधं फलं चास्य कूटस्य मुनिभिः स्मृतम् ।।७५ ।।