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________________ चतुर्थः १३३ . . - .। जयसेनश्चाभवद्राजा सोऽपि संघसमन्वितः । यात्रां कृत्वा विधानेन सम्मेदाचलभूभृतः ।।६६ ।। राज्यं विभवसेनाय दत्त्वा राज्याभिषेकतः । द्वात्रिंशल्लक्षजीवैश्च दीक्षां जग्राह धार्मिकः | १७०।। अन्वयार्थ – च = और, राजा = राजा. जयसेनः = जयसेन, अभवत् - था, संघसमन्वितः = संघों से युक्त होते हुये, सः - उस, धार्मिक: = धार्मिक राजा ने, अपि = भी, विधानेन - विधिपूर्वक, सम्मेदाचलभूभृतः = सम्मेदाचल पर्वत की, यात्रा = यात्रा को, कृत्वा = करके, च = और, राज्याभिषेकतः = राज्याभिषेक से, विभवसेनाय = विभवसेन के लिये, राज्यं = राज्य को, दत्त्वा = देकर, द्वात्रिंशल्लक्षजीवैः = बत्तीस लाख जीवों के, (सह = साथ). दीक्षा = मुनिदीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर लिया। श्लोकार्थ – और मी एक राजा जयसेन था। सो उस धार्मिक राजा ने भी विधिपूर्वक सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा को करके फिर अपने पुत्र विभवसेन को राज्याभिषेक से राज्य देकर बत्तीस लाख जीवों के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। कर्मणां तिमिरं छित्त्वा केवलज्ञानभानुना । पूर्वोक्तजीवैः सहितः सिद्धालयमयाप सः ।।७१।। अन्वयार्थ -- कर्मणां = कर्मों के, तिमिरं = अन्धकार को केवलज्ञानभानुना = केवलज्ञान रूप सूर्य से, छित्त्वा = छेदकर-मिटाकर, सः = उसने, पूर्वोक्तजीवैः = पूर्वोक्त बत्तीस लाख जीवों, सहितः = सहित. सिद्धालयं = सिद्धालय को, अवाप = प्राप्त किया। श्लोकार्थ – केवलज्ञान रूपी सूर्य से कर्मों के अन्धकार को मिटाकर उन मुनिराज ने बत्तीस लाख जीवों के साथ सिद्धालय को प्राप्त किया। विभवसेनवंशेऽभूदाजा विजयसेनकः । तेन सम्मेदयात्रा वै कृता चक्रयतिना सह । ७२ ।। अन्वयार्थ -- विभवसेनवंशे = विभवसेन के वंश में, विजयसेनकः =
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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