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________________ १३२ श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य भी, यात्राम् = सम्मेदशिखर की तीर्थ को, उदिदश्य = लक्ष्य कर या उद्देश्य में लेकर, बलसंयुतः = सेना सहित, अचलत् = चल दिया, सः = उसने, स्वप्ने = स्वप्न में, स्वपुत्रं = अपने पुत्र को, मृतं = मरा हुआ, अपश्यत् = देखा, (च -- और), मोहात् = मोह के कारण, न्यवर्तत = लौट गया। श्लोकार्थ - और वह अभव्य राजा भी सेना सहित सम्मेदशिखर पर्वत की तीर्थवन्दना करने का लक्ष्य लेकर चल दिया किन्तु उसने स्वप्न में अपने मरे हुये पुत्र को देखा तो मोह के कारण वापिस लौट गया। गतो विजयभद्रस्तं सम्मेदं सङ्घसंयुतः। विधिवत्कृतवान्यात्रा परमानन्दसंयुतः ।।६७ ।। अन्वयार्थ – संघसंयुत्तः = संघ के साथ. परमानन्दसंयुतः = परम आनंद से युक्त. विजयमदः = राजा विजयभद्र, तं सम्मेदं = उस सम्मेदशिखर पर्वत पर. गतः = पहुंचा या गया, (च = और), विधिवत् = विधि सहित, यात्रां = यात्रा, (अपि = भी), कृतवान् = कर ली। श्लोकार्थ – राजा विजयभद्र संघ के साथ अत्यधिक परमानंद रस से तृप्त होता हुआ सम्मेदशिखर पर पहुंचा और उसने विधि-विधान सहित तीर्थयात्रा भी की। यात्रा ह्यभव्यजीवानां सम्मेदस्य न वै स्मृता । भव्या एवं सुयात्रार्हा इत्युक्तं नालीकं स्यात् ।।६८।। अन्वयार्थ - वै = वास्तव में, अभव्यजीवानां = अभव्य जीवों के लिये, सम्मेदस्य = सम्र्मेद शिखर की, यात्रा = यात्रा, न = नहीं, हि - ही, स्मृता = मानी गयी या स्मृत की गयी है, भव्याः = भव्यजीव, एव = ही, सुयात्राहीं = उस शुभयात्रा के लिये योग्य. (भवन्ति = होते हैं), इति = इस प्रकार, उक्तं = कहा गया वचन. अलीकं = मिथ्या, न = नहीं. स्यात् = हो। श्लोकार्थ – वास्तव में अभव्य जीवों के लिये सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा नहीं ही मानी गयी है। उस शुभयात्रा को करने के पात्र भव्य ही होते हैं यह कहा हुआ कथन मिथ्या नहीं होवे ।
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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