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चतुर्थ:
१७ सप्ततिकोट्यः = सत्तर करोड़, सप्ततिप्रोक्तलक्षं = सत्तर लाख, द्विचत्वारिंशत् = बयालीस. सहस्राणि = हजार, च = और, संख्याशतप्रमान् = सैकड़ा की संख्या को, सप्त - सात, (ज्ञात्वा = जानकर), शतानि = सौ, च = और, पञ्च = पाँच, इति = इस प्रकार, उक्तप्रमाणाः = कहे गये संख्या प्रमाणरूप. तत्रस्थाः = आनन्दकूट पर स्थित मुनिराज, सिद्धतां =
सिद्धपने को, गताः = चले गये। श्लोकार्थ – तिहत्तर कोड़ाकोड़ी और सत्तर करोड़ सत्तर लाख बयालीस
हजार सात सौ पांच मुनिराज आनन्दकूट पर विराजमान होकर सिद्धत्व को प्राप्त हुये जानना। यहाँ संख्या प्रमाण
प्रदर्शित किया गया है। जम्बूद्वीपे शुचिक्षेत्रे भारते पूर्वमन्दरे।
राजा पूर्णपुरस्यासीन्नामतो रत्नशेखरः ||५३।। अन्वयार्थ – जम्बूद्वीपे = जम्बूद्वीप में, पूर्वमन्दरे = पूर्वमंदरमेरू पर,
शुचिक्षेत्रे = पवित्र स्थान रूप आर्य क्षेत्र में, मारते = भरतक्षेत्र रूप भारत में, पूर्णपुरस्य = पूर्णपुर नगर का, राजा = राजा,
नामतः = नाम से, रत्नशेखरः = रत्नशेखर, आसीत् = था। श्लोकार्थ – जम्बूद्वीप के पूर्वमन्दरमेरू पर पवित्र आर्यक्षेत्र में भारत में
पूर्णपुर नामक नगर था। जिसका राजा रत्नसेन था। राज्ञी तस्य महापुण्या नाम्ना सा चन्द्रिकामती । तद्भूपवंशे विजयभद्रोऽभूधरणीपतिः ।।५४।। अन्वयार्थ – तस्य = उस राजा की, महापुण्या = अतिशय पुण्य वाली.
राज्ञी = रानी, (आसीत् = थी), नाम्ना = नाम से, सा = वह, चन्द्रिकामती = चन्द्रिकामती, (उच्यते स्म = कही जाती थी). तभूपवंशे = उस राजा के वंश में, (एकः = एक), धरणीपतिः
= राजा, विजयभद्रः = विजयभद्र, अमूत् = हुआ था। श्लोकार्थ - राजा रत्नसेन को अतिशय पुण्यशालिनी एक रानी
चन्द्रिकामती थी। उस राजा के वंश में एक विजयभद्र नामक राजा हुआ था।